जावरा की हुसैन टेकरी का इतिहास

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रतलाम से जावरा 33 किलोमीटर है। यहां स्थित हुसैन टेकरी के प्रति सभी धर्मों की श्रद्धा है। इतिहास के मुताबिक जावरा के नवाब मोहम्मद इस्माईल अली खां की रियासत में दशहरा और मोहर्रम एक ही दिन आया। जुलूस निकालने के लिए दोनों कौमों में झगड़ा होने लगा।

तब नवाब ने तय किया कि वे दशहरे के जुलूस में शामिल होंगे और मोहर्रम का जुलूस दशहरे के जुलूस के बाद में निकाला जाएगा। इस बात से ताजिएदार नाराज हो गए और जुलूस आधा-अधूरा निकला। अगले दिन हीरा नामक औरत ने देखा कि हुसैन टेकरी की जगह कई रूहानी लोग वुजू कर मातम मना रहे हैं। हीरा ने यह बात नवाब को बताई।

नवाब ने ताजियों को फिर से बनवाया और पूरी शानो-शौकत से जूलूस निकाला। जब जुलूस हुसैन टेकरी पहुंचा तो सभी को रूहानी सुकून देने वाली खुश्बू का अहसास हुआ।

नवाब ने जितनी जगह से खुशबू आ रही थी, उसे रेखांकित कर एक दायरे में महफूज कर दिया। इसी जगह पर यकायक एक चश्मा भी निकलने लगा। बाद में लोगों ने महसूस किया इस चश्मे का पानी पीने से बीमारियां दूर हो जाती हैं। धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि यहां बदरूहों से छुटकारा मिल जाता है।

फिर क्या था, यहां हर गुरुवार को लोगों का मेला लगने लगा। मोहर्रम के चालीसवें दिन और होलिका दहन के समय यहां होने वाले चेहल्लुम मेले में लाखों लोग शरीक होते हैं।

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