यह सब देखकर उन्हें इतना बुरा लगा कि वे बिना कुछ बोले उल्टे पांव वापस चले गए और मस्जिद में जाकर पश्चाताप करने लगे।
जब फातिमा को पता चला कि उसके पिता उल्टे पांव वापस चले गए तो वह चिंतित हो उठी। फातिमा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने अपने लड़के को दौड़ाया कि वह देखकर आए कि उसके नाना घर आकर एकाएक वापस क्यों चले गए?
लड़के ने माता का आदेश पाकर जब वह अपने नाना के पास पहुंचा तो देखा कि उसके नाना मस्जिद में बैठकर विलाप कर रहे हैं।
फातिमा का बेटा बड़ा परेशान हुआ। उसने उनसे विलाप करने का कारण पूछा तो वे बोले, 'यहां गरीब भूख से परेशान हैं और मेरी बेटी रेशमी परदों के बीच चांदी के कड़े पहनकर मौज कर रही है। यही देखकर मुझे शर्म आई और मैं चला आया।'
बच्चे ने घर जाकर माता से सारा हाल कह सुनाया। फातिमा को भी लगा कि उसने अनजाने में ही अपने पिता का दिल दुखाया है। बस क्या था, उसने रेशमी परदों में उन चांदी के कड़ों को बांधकर अपने पिता के पास भिजवा दिया।
सादा जीवन उच्च विचार ही मुहम्मद साहेब का सरोकार था। वह कभी नहीं चाहते थे कि उनके विचारों को मानने वाले फिजूलखर्ची करें।