घर बैठे इंटरनेट पर खरीदें किताबें

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आईआईटी के दो पूर्व छात्र चंडीगढ़ के सचिन और बिन्नी बंसल जो कि अमेजन डॉट कॉम में भी काम कर चुके हैं, ने 2007 सितंबर में फ्लिपकार्ट डॉट कॉम की शुरुआत की। दोनों ही अमेजन में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर काम कर रहे थे, लेकिन दोनों में कुछ अपना करने की ललक थी। दोनों यह मानते हैं कि किताबों की रिटेलिंग शुरू करने के पीछे प्रारंभिक प्रेरणा अमेजन ही रही है। सचिन कहते हैं,"किसी और चीज की तुलना में किताबों के साथ शुरू करना ज्यादा आसान रहा, क्योंकि इसकी लागत बहुत कम रही।"

फ्लिपकार्ट ने पहले कुछ चुनिंदा किताबों से शुरू करके बाद में म्यूजिक, फिल्में, गेम्स और सेलफोन को भी अपने काम में शामिल किया। दोनों ने यह महसूस किया कि ई-कॉमर्स के तहत किताबों की रिटेलिंग के क्षेत्र में काफी संभावना है। हालाँकि प्रारंभिक तौर पर फ्लिपकार्ट को कई दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा। सबसे पहले तो ई-कॉमर्स को लेकर भारत में न तो ज्यादा रुचि है और न ही इस पर कोई विश्वास करता है।

फिर क्रेडिट कार्ड से पेमेंट करने को लेकर भी यहाँ दिक्कतें हैं, क्योंकि यहाँ अभी भी क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल बहुत कम लोग करते हैं। सचिन और बिन्नी बंसल इस तथ्य से भी अवगत हैं कि इतना कुछ बदल जाने के बाद अभी भी भारत में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग बहुत लोकप्रिय नहीं है। इसी को देखते हुए फ्लिपकार्ट ने किताब मिल जाने के बाद नकद भुगतान करने की योजना शुरू की और इसके लिए कई कूरियर कंपनियों के साथ ही पोस्टल डिपार्टमेंट से भी अनुबंध किया।

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यानी किताब चाहिए, तो वेबसाइट flipkart.com पर जाकर ऑर्डर दें और किताब आपके घर पहुँच जाएगी। अब उन्होंने बेंगलुरू में एक पायलट योजना भी शुरू की है, जिसमें फ्लिपकार्ट के लोग ही डिलीवरी देंगे। बिन्नी के अनुसार, घर तक किताब पहुँचाना फिलहाल बड़ी चुनौती है। अब हमारा स्टाफ किताब पहुँचाएगा और कैश लेगा। इससे हम या तो तुरंत किताब पहुँचा पाएँगे या फिर एक या दो दिन में किसी भी हालत में पहुँचा पाएँगे।"

निवेशकों और प्रकाशकों को साथ लाना भी बड़ी समस्या रही। हर नए व्यवसाय की तरह ही फ्लिपकार्ट को भी फंड की समस्या से दो-चार होना पड़ा। सचिन बताते हैं, 'निवेशक ई-कॉमर्स के क्षेत्र में पैसा लगाने में रुचि नहीं लेते हैं और फ्लिपकार्ट भी इससे अलग नहीं है। फिर भारत में तो ई-कॉमर्स के प्रति वैसे भी रुझान नहीं है, इसलिए भी वेंचर केपिटलिस्ट्स ने इसमें निवेश करने में रुचि नहीं दिखाई।' फिर भी फ्लिपकार्ट ने 6 महीने में ही अपनी जगह मजबूत कर ली। अब एसेल पार्टनर्स और टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट जैसे इंवेस्टर ने फ्लिपकार्ट से हाथ मिलाया है।

सितंबर 2007 में जब फ्लिपकार्ट को शुरू किया गया था तो सचिन और बिन्नी ने 15 प्रकाशकों को लिस्ट किया था, उसमें से केवल 2 ही साथ काम करने के लिए तैयार हुए थे। फिर 10 दिन बाद पहली किताब बिकी थी। सचिन बताते हैं, 'आज फ्लिपकार्ट के पास 500 प्रकाशक हैं और 200 साथ काम करने के लिए अनुबंध करने को तैयार हैं। तब 15-20 प्रकाशकों को साथ लाने में हमें एक पूरा साल लगा था, लेकिन आज हमारे पास बड़ा बैक-लॉग है।'

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जब फ्लिपकार्ट ने इस क्षेत्र में कदम रखा था तो एक तरह से यह अप्रयुक्त क्षेत्र ही था, लेकिन अब स्थितियाँ अलग हैं। अब इंफीबिम जैसी कंपनियाँ भी मैदान में आ गई हैं। हालाँकि ये और इस तरह की कंपनियाँ थर्ड-पार्टी वेंडर हैं, इसकी वजह से इनके ऑनलाइन सामान की कीमत और क्वॉलिटी पर कंपनी का नियंत्रण नहीं रह जाता है, लेकिन फ्लिपकार्ट का मामला अलग है। ये अपने वेयरहाउस का उत्पाद बेच रहे हैं।

अब फ्लिपकार्ट न सिर्फ अंग्रेजी, बल्कि हिंदी सहित अन्य कई भारतीय भाषाओं में भी ऑनलाइन किताबें बेच रही हैं। 2010 तक फ्लिपकार्ट की प्रगति बहुत आशाजनक रही। उम्मीद है कि इस वित्त वर्ष में 100 करोड़ रुपए की सेल हो जाएगी। यह सेल 2008-09 में 5 करोड़ और 2009-10 में 20 करोड़ रुपए थी। फ्लिपकार्ट अब अपने इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश बढ़ा रही है, इसके साथ ही अलग-अलग शहरों में अपने वेयरहाउस की संख्या बढ़ाने की भी इसकी योजना है।

सचिन और बिन्नी जानते हैं कि किताबों के बिजनेस में अच्छा मार्जिन है। यहाँ 80 से लेकर 100 प्रतिशत तक मार्जिन रहता है। हालाँकि फ्लिपकार्ट प्रकाशकों से 25 से 40 प्रतिशत तक कंसेशन से किताबें लेती है और उन्हें डिस्काउंट पर बेचती है, फिर भी सारे खर्च निकालने के बाद 8-10 प्रतिशत तक का मार्जिन निकाल लेती है। ज्यादातर प्रकाशक फ्लिपकार्ट को 100 प्रतिशत वापसी की नीति पर किताबें उपलब्ध कराते हैं। मतलब यदि अनुबंध के तहत तयशुदा समय में किताबें नहीं बिकीं तो फ्लिपकार्ट अच्छी दशा में किताबें प्रकाशकों को लौटा सकेगी।

फिलहाल भारत में किताबों के क्षेत्र में ऑनलाइन रिटेल श्रेणी में फ्लिपकार्ट निर्विवाद रूप से बड़ा नाम है। यह हर दिन लगभग 5000 किताबें बेचती है। तकनीक फ्लिपकार्ट के लिए वरदान की तरह है। इसके पास 50 सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स की टीम है, जो लगातार तकनीक पर काम कर रही है।

फिलहाल कुल आय का 40 प्रतिशत तकनीक पर निवेश किया जा रहा है। फ्लिपकार्ट अब देशभर में अलग-अलग जगह अपने वेयरहाउस शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है। कुल मिलाकर अभी फ्लिपकार्ट को लंबा रास्ता तय करना है, लेकिन सकारात्मक बात यह रही कि शुरुआत बहुत अच्छी रही।

अक्सर पाठकों की यह शिकायत रहती है कि वे पढ़ना तो चाहते हैं, लेकिन समझ नहीं पाते कि इन दिनों क्या नया प्रकाशित हो रहा है और उसे कहाँ से खरीदा जा सकता है? इस समस्या का हल लेकर भारत में आई है फ्लिपकार्ट डॉट कॉम...।

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