ग्राहकों को लुभाने की कवायद

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नई दिल्ली, मोबाइल फोन सेवा बाजार में कंपनियों के बीच जी-तोड़ प्रतिस्पर्धा के कारण कॉल दरों में तेज गिरावट आई है। इससे परेशान कंपनियों के लिए नेटवर्क पर रिंगटोन, ज्योतिष, समाचार, संगीत डाउन लोड जैसी तरह-तरह की मूल्यवर्धित सेवाएँ (एम-वैस) कमाई का धीरे धीरे बड़ा सहारा बनने जा रही हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में तीसरी पीढ़ी के मोबाइल फोन नेटवर्क 3जी की सम्पूर्ण शुरुआत के बाद मोबाइल ऑपरेटरों की कमाई में वैस की हिस्सेदारी ‘कई गुना’ बढ़ जाएगी।

मुंबई की मोबाइल वैस कंपनी नजारा टेक्नोलॉजीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) नीतीश मित्रसेन ने कहा कि 2013 तक देश में मोबाइल वैस का बाजार तीन गुना बढ़कर 20,000 करोड़ रुपए से भी अधिक का हो जाएगा। दूसरे देशों में जहाँ ऑपरेटरों के राजस्व में वैस की हिस्सेदारी 30 से 40 प्रतिशत होती है, वहीं भारत में यह सिर्फ 9-10 प्रतिशत है।

इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, जून 2008 में देश में मोबाइल वैस का बाजार 5,780 करोड़ रुपए का था, जो अब लगभग 6,500 करोड़ रुपए का हो गया है।

दूरसंचार नियामक ट्राई ने भी 2008-09 की अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा है कि आगामी पाँच साल में ऑपरेटरों के राजस्व में वैस की हिस्सेदारी बढ़कर 30 फीसद हो जाएगी।

मित्रसेन के मुताबिक, ऑपरेटरों के प्रति ग्राहक औसत राजस्व (एआरपीयू) में कमी आ रही है। ऐसे में ऑपरेटर निश्चित रूप से वैस पर ज्यादा ध्यान देंगे। उनका मानना है कि 2010 के अंत तक ऑपरेटरों के राजस्व में वैस की हिस्सेदारी बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुँच सकती है।

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जबकि 2013 तक यह बढ़कर 35 से 40 प्रतिशत पर पहुँच जाएगी। आईई मार्केट एंड रिसर्च की मोबाइल बाजार पर रिपोर्ट के अनुसार, 2008 में ऑपरेटरों का प्रति ग्राहक औसत आय (एआरपीयू) 302 रुपए थी, जो 2013 तक घटकर 227 रुपए पर आ जाएगी। हालाँकि, इस दौरान मोबाइल ग्राहकों की संख्या वर्तमान के 50 करोड़ की तुलना में 95 करोड़ के आँकड़े को पार कर जाएगी।

वायस सेवा से आमदनी में कमी के मद्देनजर तमाम ऑपरेटर वैस के जरिए आमदनी बढ़ाने के लिए कमर कस रहे हैं। एयरसेल ने हाल में इन्फोसिस टेक्नोलाजीज के साथ अपना मोबाइल एप्लिकेशन स्टोर पेश किया है। इसी तरह रिलायंस कम्युनिकेशंस ने कनाडा की ईजीमीडिया के साथ एसएमएस के जरिए ईमेल की सुविधा पेश की है।

इंडियन सेल्युलर एसोसिएशन (आईसीए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज महेंद्रू का मानना है कि वैस का इस्तेमाल सिर्फ आमदनी बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। बल्कि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वैस से उपभोक्ता को क्या फायदा पहुँच रहा है।

महेंद्रू ने कहा कि ऑपरेटरों को वैस के तहत क्षेत्रीय भाषाओं में वायस सेवा उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए। भारत में ऐसे हैंडसेटों का वितरण करने वाली विजन डिस्ट्रिब्यूशन के प्रमुख राजीव बब्बर का मानना है कि हमें ऐसी एप्लिकेशनों (काम की चीजों) पर ध्यान देना होगा, जो आम आदमी की जरूरत की हो।

उन्होंने कहा, ‘ऑपरेटरों की एक ग्राहक से औसत कमाई घट रही है। उसे युवा वर्ग को ध्यान में रख एप्लिकेशन पेश करने चाहिए।’ एक अन्य मोबाइल वैस कंपनी एमबिट के सीईओ राघवेंद्र अग्रवाल ने कहा कि भारत बड़े शहरों के मोबाइल धारक अब अपने सेट से भी कुछ और उपयोगी चीजों की अपेक्षा करते हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार, 3जी के आने के बाद मोबाइल टीवी, फुल मोशन वीडियो, वायरलेस टेलीकान्फ्रेंसिंग, मल्टी प्लेयर गेम्स और एम कामर्स की माँग बढ़ेगी। फिलहाल भारत में वैस बाजार में 90 फीसद हिस्सेदारी एसएमएस तथा कॉलर बैक रिंग टोन (सीबीआरटी) की है।

मित्रसेन का मानना है कि ग्रामीण क्षेत्र भी वैस में योगदान दे सकता है, पर इसके लिए जरूरत है कि ग्रामीणों के लिए यूटिलिटी सेवाओं की पेशकश की जाए। उन्होंने ऐसा ही एक उदाहरण देते हुए कहा कि ग्रामीणों को मोबाइल के जरिए अंग्रेजी की शिक्षा दी जा सकती है। (भाषा)

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