फेसबुक बन रहा परेशानी का सबब

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अमेरिका में फेसबुक यूजर्स पर हुई एक रिसर्च बता रही है कि फेसबुक पर ज्यादा समय बिताना अवसाद बढ़ा रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स की ये आभासी दुनिया यूजर्स को वास्तविकता से परे ले जा रही है। यदि युवाओं को अपनी क्रिएटिविटी और फिटनेस बनाए रखना है तो इस वर्चुअल दुनिया से बाहर आना होगा। अब फेसबुक पर समय बिताने की सीमाएं निर्धारित करने की जरूरत है। जो फेसबुक को ही अपनी दुनिया मान बैठे हैं, उन युवाओं को अब आत्ममंथन करना चाहिए।

सोशल नेटवर्किंग साइट्स लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए है, लेकिन अब यह समाज में विकृतियां फैला रही हैं। फेसबुक की आभासी दुनिया मिले बगैर एक-दूसरे से जुड़ी रहती है। एक दूसरे के सपने, सुख-दुःख बांटती भी है और दूसरे ही पल रिश्तों को ब्लॉक कर आगे बढ़ जाती है।

अपने शहर में भी फेसबुक का ऐसा विश्व तैयार हो चुका है, जिसमें लाइक और शेयर का खेल चलता रहता है। शहर के युवाओं का एक बड़ा हिस्सा फेसबुक का एडिक्ट बन चुका है। यह एडिक्शन उनकी जिंदगी में ऐसा सूक्ष्म बदलाव ला रहा है, जिसका अंदाजा वे नहीं लगा पा रहे हैं। उनके लिए अब फेसबुक स्टेटस सिंबल बन चुका है।

दोस्त आमने-सामने मिले या ना मिले, लेकिन फेसबुक पर मुलाकात जरूरी होती है। ऐसा कहना भी गलत होगा कि इस पर केवल युवाओं का राज है। 35 से ज्यादा उम्र के यूजर्स भी रोज सैकड़ों की तादाद में फेसबुक का हिस्सा बन रहे हैं। फेसबुक के कारण युवाओं की मानसिकता में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है।

स्टेटस सिंबल न बनाएं
कनाडा की गुलेफ यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध के मुताबिक कम उम्र युवा फेसबुक पर होने को स्टेटस सिंबल मानने लगे हैं। यदि कोई बंदा फेसबुक पर न हो तो उसे आउट डेटेड कहने में देर नहीं की जाती। कभी मोबाइल, बाइक, गर्लफ्रेंड को स्टेटस सिंबल में शामिल किया जाता था, लेकिन अब इसमें फेसबुक भी जुड़ चुकी है। शोध में कहा गया है कि सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर ज्यादा समय बिताने से चिड़-चिड़ापन और गुस्सा बढ़ने लगता है। दोस्तों से रिश्ते भी पहले जैसे नहीं रहते। शोध यह भी कहता है कि फेसबुक पर रोज दो घंटे गुजारना मानसिक क्षमता पर गहरा प्रभाव डाल रहा है।

मत बनो एडिक्ट
मनोचिकित् सकों का कहना है कि फेसबुक समाज से जुड़ने का एक अच्छा माध्यम है, लेकिन अति हर चीज की बुरी होती है। वर्तमान में युवा फेसबुक पर ज्यादा समय बिता रहे हैं। एडिक्शन बढ़ने पर क्रिएटिविटी पर बुरा असर होता है। यहां बनने वाली रिलेशनशिप भी रियल लाइफ में उतनी कामयाब नहीं हो पाती।

रचनात्मकता पर है खतरा
यूथ के लिए फेसबुक एक नशे की तरह हो चुकी है। 18-30 साल के युवाओं से बात करने पर मालूम हुआ कि वे रोज दो से आठ घंटे तक फेसबुक से चिपके रहते हैं। इससे न केवल उनकी पढ़ाई प्रभावित हो रही है, बल्कि कुछ नया करने की रचनात्मकता भी खत्म हो रही है। अधिकांश युवाओं के लिए फेसबुक गर्लफ्रेंड खोजने का माध्यम बना हुआ ह ै।

याहू आंसर्स पर एक शिकायत
मैं बैगी हूं, कॉलेज गोइंग स्टूडेंट। मेरी परेशानी का कारण फेसबुक है। मेरे बायफ्रेंड और मेरी रिलेशनशिप बहुत स्मूथ चल रही थी जब तक कि वह फेसबुक यूजर नहीं बन गया। फेसबुक पर आने के कुछ महीनों बाद हमारा मिलना कम होता गया। वो पहले की तरह रोज मिलने नहीं आता था। फेसबुक पर ही बात कर लिया करता था। मैं अब भी उसे बहुत चाहती हूं, लेकिन मुझे लगता है कि उसका ध्यान मुझसे हट चुका है। मुझे लगता है कि मेरे और मेरे बायफ्रेंड के बीच फेसबुक आ गया है।

ऐसे तनाव द ेत ा है फेसबुक
- तनाव बढ़ने की शुरुआत फ्रेंड्स बढ़ने के साथ शुरू होती है। जितने ज्यादा दोस्त, उतनी स्ट्रेस।

- जब लिस्ट में 500 से ज्यादा दोस्त हो जाते हैं तो अच्छी व मनोरंजक पोस्ट डालने का प्रेशर बढ़ जाता है।

- स्टेटस पर जब मन मुताबिक लाइक नहीं मिलते तो भी बढ़ता है तनाव।

- मैसेज बॉक्स में अनचाहे लोगों के मैसेज देखकर मानसिक परेशानी होती है।

- प्रेमी या प्रेमिका के स्टेटस, मैसेज या लाइक का इंतजार करना फेसबुक युजर को जर्बदस्त तनाव में ले आता है।

- निजी रिलेशनशिप को फेसबुक पर बढ़ाने में कई तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे किसी तीसरे का बीच में घुस आना।

- ऐसे लोगों का डर हमेशा लगा रहता है, जिन्हें आप अपनी फ्रेंड लिस्ट में नहीं देखना चाहते।

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