चिप डिजाइनिंग में भारतीय उद्योग आगे

विट्‍ठल नागर
देश की आईटी, आईटीईएस, बीपीओ एवं फार्मा कंपनियों ने विश्व बाजार में अपनी जो पैठ बनाई है, वैसी ही पैठ सेमीकंडक्टर क्षेत्र की डिजाइनिंग कंपनियाँ भी कुछ ही वर्षों में बना सकती हैं, क्योंकि इनका कारोबार बहुत तेजी से बढ़ रहा है एवं इनके उत्पादों में विश्वभर की इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की माँग बढ़ रही है।

वर्ष 2005 (जनवरी से दिसंबर) में इन कंपनियों का कारोबार 114 करोड़ डॉलर का था। यह वर्ष 2007 में बढ़कर 230 करोड़ डॉलर का एवं वर्ष 2015 में 3600 से 5000 करोड़ डॉलर हो जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र के उद्योगों में दो तरह के उत्पाद होते हैं। पहला है चिप या माइक्रोचिप का निर्माण। यह विनिर्माण क्षेत्र में आता है एवं इसमें पूँजी निवेश विशालतम होता है। माइक्रो चिप्स के निर्माण में अभी ताईवान व चीन सबसे आगे हैं।

भारत सरकार ने 22 फरवरी 2007 को माइक्रोचिप्स का देश में निर्माण करने के लिए उदार औद्योगिक नीति की घोषणा की थी, जिसमें ऐसे उद्योगों को 25 प्रतिशत तक की राजसहायता (सब्सिडी) देने की बात कही गई थी, किंतु चीन व ताईवान की तुलना में यह रियायत सरीखी थी, इसलिए भूमंडलीय कंपनी 'इंटेल' भारत में माइक्रोचिप्स निर्माण का उद्योग लगाने से मुकर गई।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र में एक और उद्योग आता है, जिसे चिप डिजाइनिंग कहते हैं और इसी उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए कुछ भूमंडलीय कंपनियों जैसे एसटीएमई इलेक्ट्रॉनिक्स, फ्रीस्केल एवं एनएक्सजी आदि ने भारत में अपने कुछ केंद्र स्थापित किए हैं।

भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों की बड़ा-चढ़ी क्षमता का ये कंपनियाँ अच्छा लाभ कमा रही हैं। भारतीय इंजीनियरों के लिए चिप्स निर्माण की गहरी प्रौद्योगिकी में जाने के बजाय उन्होंने चिप्स डिजाइनिंग की गहराई में जाना उपयोगी समझा और इन कंपनियों ने इसका अच्छा फायदा उठाया।

सेल फोनों में विविध क्षमताएँ जोड़ने एवं उन्हें बहुउपयोगी बनाने, एलसीडी टीवी, सेटटॉप बाक्सों एवं स्मार्ट वाशिंग मशीनों के लिए चिपों को भारतीयों ने डिजाइन किया है, ताकि वे विविध कार्य कर सकें। विश्व में इन चिपों की अच्छी माँग है।

इन डिजाइनों का लाभ देशी व विदेशी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियाँ तेजी से उठा रही हैं जिससे सेमीकंडक्टर क्षेत्र की चिप डिजाइनिंग कंपनियों का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। यह उद्योग बहुत तेजी से अपना विक्रय व लाभ बढ़ा रहा है। वर्ष 2015 तक इस उद्योग में 8 लाख से अधिक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरों को काम मिल सकता है।

अब एशिया व यूरोप की सेमीकंडक्टर क्षेत्र की कंपनियों ने यह मान लिया है कि चिपों की डिजाइनिंग व अनुसंधान में भारत एक बड़ा केंद्र बन रहा है और कई बड़ी वैश्विक कंपनियाँ ठेकों पर देश में चिपों की डिजाइनिंग का काम करा रही हैं।

देश में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश व तमिलनाडु में ऐसी डिजाइनिंग के सौ से अधिक उद्यम कार्यरत हैं। पुणे, अहमदाबाद, दिल्ली व नोएडा में भी कुछ बड़ी कंपनियाँ कार्यरत हैं। इनमें ई-इन्फोचिप्स एवं एसटी इंडिया प्रमुख हैं।

उत्पाद डिजाइन में भारत को एक उभरते हुए बड़े केंद्र में तेजी से विकसित करने में ई-इन्फोचिप्स का योगदान उल्लेखनीय है। इसने उन्नत, बुद्धिमान व चतुर आईपी सर्वेलैंस कैमरा बनाया है, जो आईपी नेटकैम के नाम से जाना जाता है।

इस कैमरे की चिप्स की डिजाइनिंग की लागत भी बहुत कम है, इसीलिए अब भारत में चिप्स की डिजाइनिंग, उसकी लागत व दक्षता का प्रश्न ही नहीं रहा है। टेक्सास इन्स्ट्रूमेंटेशन (अमेरिका) कंपनी ने इसीलिए बहुत पहले से अपना अनुसंधान केंद्र बंगलोर में खोला था और अब वह भारत में अपने विक्रय कार्यालयों की संख्या बढ़ा रहा है एवं नए-नए भागीदार बना रहा है।

सेमीकंडक्टर क्षेत्र की भूमंडलीय कंपनियाँ जैसे एसटी माइक्रो इलेक्ट्रॉनिक्स, फ्री स्केल एवं एनपीएक्स ने भारत में अपने डिजाइनिंग केंद्र खोले हैं, जिनमें ये कंपनियाँ भी अधिक लाभान्वित हो रही हैं। भारत में चिप्स डिजाइनिंग की प्रतिस्पर्धा बहुत सख्त होने वाली है।

देश के अखबारों में सेमीकंडक्टर क्षेत्र के इन उद्योगों की अधिक चर्चा नहीं होती और न ही इस बात का उल्लेख होता है कि किस तरह भारतीय कंपनियाँ वैश्विक व भूमंडलीय कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। अधिक विदेशी मुद्रा एवं अधिक रोजगार उपलब्ध कराने वाला यह क्षेत्र अधिक समय तक अँधेरे में नहीं रहेगा, यह तय है।

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