2007 में सूचना-तकनीकी-जालजगत : एक सिंहावलोकन

रवि रतलामी
सूचना-तकनीक और जालजगत में वर्ष 2007 के हिट और फ़्लॉप का लेखा-जोखा
प्रख्‍यात ब्‍लॉगर रवि रतलामी इंटरनेट, कम्‍प्‍यूटर और तकनीक से जुड़े विभिन्‍न विषयों पर लेखन के लिए जाने जाते हैं। ब्‍लॉगिंग से जुड़ी कोई भी समस्‍या हो, रवि रतलामी के पास उसका हल जरूर होता है। उनके ब्‍लॉग पर कम्‍प्‍यूटर और ब्‍लॉगिंग के किसी-न-किसी तकनीकी पहलू की जानकारी देता नया आलेख हमेशा देखा जा सकता है।

ये तमाम जानकारियाँ अब वेबदुनिया के पाठकों के लिए भी उपलब्‍ध होंगी। रवि रतलामी वेबदुनिया के लिए एक नियमित कॉलम लिखने जा रहे हैं, जो इंटरनेट, तकनीक और आईटी के विभिन्‍न पहलुओं से हमारा परिचय कराएगा। इसकी शुरुआत हो रही है, आज गुजरे वर्ष के तकनीकी उतार-चढ़ावों के लेखा-जोखा से। आज इस कड़ी में प्रस्‍तुत है, रवि रतलामी का पहला आलेख :

ND
2007 के प्रारंभ में सूचना तकनीक के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव की संभावनाओं को देखते हुए हमेशा की तरह कुछ वार्षिक भविष्यवाणियाँ की गई थीं, जिनमें कुछ तो पूरे हुए और कुछ का तो पता ही नहीं चला। सबसे बड़ी असफल भविष्यवाणियों में से एक - गूगल के कम्प्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम के 2007 में अवतरण की अटकलों को माना जा सकता है, जो अंततः महज कोरी कल्पना ही सिद्ध हुई।

मगर यह कोरी कल्पना 2007 के अंत तक आते-आते गूगल के मोबाइल फ़ोनों के लिए मुक्त स्रोत के ऑपरेटिंग सिस्टम एंड्राइड के नाम से अंततः परिवर्तित रूप में फलीभूत हो ही गई। अब देखना यह है कि एंड्राइड आने वाले वर्षों में क्या गुल खिलाता है। वैसे ये बात तो तय है कि आने वाले वर्ष मोबाइल कम्प्यूटिंग के ही होंगे, क्योंकि हर व्यक्ति के जेब में अब एक अदद मोबाइल फोन वक्त की जरूरत बन चुका है ।

वर्ष 2007 के कुछ सबसे बड़े फ़्लॉपों की सूची में माइक्रोसॉफ़्ट का विंडोज विस्ता अपने आपको शामिल रखने में सफल रहा है। हालाकि यह नवंबर 2006 में जारी हुआ था, मगर इसे 2007 का उत्पाद कहना उचित होगा। सीनेट और जेडडीनेट से लेकर टेक-रिपब्लिक और पीसी वर्ल्ड तक की 2007 की शीर्ष फ्लॉप सूचियों में विंडोज विस्ता मौजूद है। कारण अनेक हैं, और हर एक के अपने अलग हैं। यदि उपयोक्ता अपने नए नवेले कम्प्यूटरों के साथ आए पूर्व संस्थापित विंडोज विस्ता को निकालकर विंडोज एक्सपी पर वापस जा रहे हैं तो फिर तो यह कहा ही जा सकता है कि निश्चित ही यह फ़्लॉप रहा है। विंडोज विस्ता के फ्लॉप रहने की कुछ प्रमुख वजहों में शामिल हैं - अत्यधिक उन्नत हार्डवेयर की आवश्यकता तथा विंडोज विस्ता में पुराने अनुप्रयोगों, प्रोग्रामों व हार्डवेयरों के समर्थन का सर्वथा अभाव।

देखना दिलचस्प होगा कि 2008 में आने वाले सर्विस पैकों के जरिए विस्ता की इन खामियों को किस हद तक दूर किया जाता है और यह अपना स्थान बना पाने में सफल होता है या नहीं। दूसरी तरफ लिनक्स कई क्षेत्रों में सफल रहा। इस ऑपरेटिंग सिस्टम में उन्नत 3डी डेस्कटॉप संभव हुआ और लिनक्स के अनगिनत, सैकड़ों संस्करण जारी हुए और इनमें से कुछ विशिष्ट संस्करणों ने आम प्रयोक्ताओं के डेस्कटॉपों में अपनी जगह बनाई। विश्व की सबसे ज्यादा पर्सनल कम्प्यूटर बेचने वाली कंपनी डेल ने भी उबुन्टु लिनक्स संस्थापित कम्प्यूटर व लैपटॉप बेचना प्रारंभ किया। लिनक्स तंत्र पर उपलब्ध केडीई4 (के-डेस्कटॉप-एनवायरनमेंट, अनुप्रयोगों व प्रोग्रामों का संकलन) का जाँच संस्करण विंडोज तंत्र के लिए भी जारी किया गया.

एपल के आई-फोन का पदार्पण भी 2007 में हुआ, जिसे कुछ खेमों में सफल तो कहीं कीमत व सुविधा के अनुपात के आधार पर फ्लॉप माना जा रहा है. जो भी हो, आई-फोन भले ही भारत में अभी तक आधिकारिक तौर पर जारी नहीं हुआ है, मगर इसने लोगों के दिलों में अच्छी-खासी दिलचस्पी तो जरूर ही जगा दी है. इसका टच स्क्रीन वाला आभासी कुंजीपट नायाब किस्म का है, जिसने मोबाइल उपकरणों के डिजाइन को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की।

डेस्कटॉप कम्पयूटरों में x64 आर्किटेक्चर अपनी जगह बनाने में असफल रहा - प्रमुखतः हार्डवेयर व सॉफ़्टवेयर के उचित समर्थन नहीं मिल पाने के कारण। भारी, बड़े और ज्यादा संसाधन खाने वाले सॉफ़्टवेयरों के कारण x86 आर्किटेक्चर के ड्यूएल कोर प्रोसेसर युक्त कम्प्यूटर प्रवेश स्तर के कम्प्यूटरों में मिलने लगे, और क्वाड (चार) कोर युक्त प्रोसेसरों का पदार्पण भी हो गया ।

पिछले कुछ समय से हर क्षेत्र में अच्छी खासी हलचलें मचा रहे - एक लैपटॉप प्रति बच्चा परियोजना की शुरुआत अंततः वर्ष 2007 में हो ही गई और इस लैपटॉप का वितरण के लिए निर्माण प्रारंभ हो गया। इसमें रेडहैट लिनक्स का विशेष सुधरा हुआ ऑपरेटिंग सिस्टम लगा हुआ है, जिसके हिन्दी करण करने के प्रयास जारी हैं।

सोशल नेटवर्किंग साइट - फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग को वर्ष 2007 का टैक हीरो माना जा सकता है, जिन्होंने एक बार फिर से ये सिद्ध कर दिया कि सरल, मगर काम के आइडिया क्लिक कर सकते हैं। एक छोटा-सा प्रोजेक्ट देखते-ही-देखते अरबों रुपयों का जालस्थल बन सकता है. हालाँकि फेसबुक में विज्ञापनों को प्रदर्शित किए जाने को लेकर उनकी अच्छी-खासी आलोचना भी हुई.

इस वर्ष के शीर्ष डाउनलोड प्रोग्रामों की सूची देखें तो पाते हैं कि वर्ष 2007 में शीर्ष डाउनलोड प्रोग्रामों में अवास्त एंटी वायरस प्रोग्राम शामिल रहा है, जो यह इंगित करता है कि वायरसों ने वर्ष 2007 में कम्प्यूटरों में संक्रमण के खतरों को कम नहीं किया। मगर फिर भी, हालात माई डूम और आई लव यू जैसे वायरसों वाले तो नहीं ही रहे। घरेलू कम्प्यूटरों के लिए अवास्त एंटीवायरस एक फ्रीवेयर प्रोग्राम है और यह एक उम्दा एंटीवायरस प्रोग्राम है, जो तीव्र गति से काम करता है - यानी कम्प्यूटर को धीमा नहीं करता, और इसकी वायरसों को पहचानने की ताकत भी अच्छी है. 60 से अधिक फ़ाइल फ़ॉर्मेटों का समर्थन करने वाला चित्र-प्रदर्शक व संपादन का फ्रीवेयर प्रोग्राम इरफ़ान व्यू भी अत्यधिक डाउनलोड की सूची में स्थान पाने में सफल रहा है ।

इनफ़ॉर्मेशन ओवरलोड के इस दौर में वर्ष 2007 में ट्विटर ने पदार्पण किया और आते ही इसने अपने पाँव गहरे जमा लिए। यूँ तो ट्विटर जैसी माइक्रो-ब्लॉगिंग सेवाएँ और दूसरी भी पहले से ही थीं, और पावेंस को ट्विटर से बेहतर माना जाता है, मगर ट्विटर का आसान प्रयोग, आसान इंटरफेस इसे हिट बना गया. यह वर्ष 2007 का सबसे सफल वेब अनुप्रयोग है. शुरूआती दिनों में ही ट्विटर सफल होने लगा था और इसके रिसोर्सेस को हर महीने दुगना करना पड़ रहा था. जबकि जूस्ट जैसी ऑनलाइन टीवी दिखाने वाली सेवाएँ भी 2007 में आईं, मगर वे यू ट्यूब के वीडियो जैसी हलचलें नहीं मचा पाईं।

एक तरह से देखा जाए तो वर्ष 2007 असफल लाइव अनुप्रयोगों का साल कहा जाएगा। गूगल डॉक्स से लेकर विंडोज लाइव और जोहो सूट से लेकर ‘सबीर हाटमेल भाटिय ा ’ के लाइव डॉक्यूमेंट तक सभी जोर-शोर से आए, मगर आम प्रयोक्ताओं में अपनी पैठ बना पाने में एक तरह से असफल ही रहे। जीवंत इंटरनेट कनेक्शन पर निर्भरता और इन जाल-अनुप्रयोगों का बेहद धीमा चलना इनकी प्रसिद्धि और स्वीकार्यता में बाधक बन गया. हालाँकि टेक पंडितों के अनुसार, भविष्य जाल-अनुप्रयोगों का ही होगा और लाइव ऑफिस सूट अपनी जगह बनाने में सक्षम होंगे ।

हिन्दी जालजगत भी 2007 में अच्छा-खासा समृद्ध हुआ। एमएसएन पहले ही हिन्दी को अपना चुका था। याहू हिन्दी समेत कई भारतीय भाषाओं में धूम-धड़ाके से आया। एओएल ने भी भारत में अँग्रेजी, हिन्दी और तमिल भाषाओं में पाँव पसारे। अभिव्यक्ति से शुरुआत हुई और दैनिक जागरण से लेकर वेब दुनिया और साल का अंत आते-आते दैनिक भास्कर तक हर प्रमुख हिन्दी जालस्थल ने हिन्दी यूनीकोड को अपना लिया। इसी साल जोश 18 हिन्दी में आया और उसने भी सफलता के स्वाद चखे.

यह था वर्ष 2007 का एक संक्षिप्त लेखा-जोखा। वर्ष 2008 में सूचना-तकनीक की दुनिया में क्या नया होता है और इसकी रफ़्तार क्या होती है, यह देखना दिलचस्प होगा। जैसा कि मशाबल में एडम चुटीली भविष्यवाणी कर रहे हैं - वर्ष 2008 में इंटरनेट सर्च में गूगल से टक्कर लेने के लिए माइक्रोसॉफ़्ट याहू को खरीद लेगा ? आप क्या सोचते हैं ? क्या सचमुच ऐसा कभी संभव हो सकेगा ?
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