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जनरेटिव AI क्या है, सस्ता या मुफ्त जनरेटिव एआई घाटे का सौदा, जानिए कई सवालों के जवाब

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

मॉन्ट्रियल , मंगलवार, 30 सितम्बर 2025 (18:45 IST)
आज के जमाने में दुधारू गाय बन चुकी जेनरेटिव कृत्रिम मेधा (एआई) से अधिकाधिक लाभ कमाने की अंधी दौड़ में शायद ही किसी को यह फुर्सत हो कि वह इसके संभावित भावी पहलुओं के बारे में विचार करे। इन पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए कि यदि यह आपके सहकर्मियों के स्थान पर यदि बेहतर ढंग से काम नहीं कर पाये, कंपनियां एआई का ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पायें या अधिकतर एआई स्टार्टअप विफल हो जाए, तो क्या होगा?
 
मौजूदा अनुमान बताते हैं कि बड़ी एआई कंपनियों को 800 अरब अमेरिकी डॉलर के राजस्व घाटे का सामना करना पड़ रहा है।
 
फिलहाल जनरेटिव एआई से होने वाला मुनाफा बेहद कम है और इससे मुख्यत: सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर, लेखक, अनुवादक एवं संपादक ही पैसे कमा पा रहे हैं। जनरेटिव एआई कुछ अच्छे और उपयोगी काम करता है, लेकिन यह अभी तक नयी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाला “इंजन” नहीं बन पायी है।
 
इसका भविष्य धूमिल नहीं है, लेकिन जैसा कि अभी प्रचारित किया जा रहा है, यह उससे काफी अलग है। जेनरेटिव एआई का भविष्य एआई कंपनियों द्वारा प्रचारित विमर्श में उपयुक्त नहीं बैठ रहा। भविष्य में होने वाले भारी लाभ का वादा कर निवेश के नये दौर को प्रोत्साहन मिल रहा है।
 
मुमकिन है कि जेनरेटिव एआई घाटे का सौदा साबित हो और यह भी संभव है कि कुछ मायने में यह बुरा भी नहीं हो।
 
------क्या है जनरेटिव एआई------
 
जेनरेटिव एआई एक तरह की कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्रणाली है, जो मौजूदा जानकारी के विशाल डेटासेट से सीखकर नयी, मौलिक सामग्री तैयार करने में सक्षम है, जिसमें टेक्स्ट से लेकर चित्र, संगीत, ऑडियो, वीडियो और कोड तक शामिल है।
 
------कमाई पर उठते सवाल------
 
‘चैटजीपीटी’ और ‘जेमिनी’ जैसी सस्ते शुल्क वाली या मुफ्त जनरेटिव एआई सेवाओं के संचालन पर अच्छी-खासी लागत आती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि एआई कंपनियां इनसे पैसा कैसे कमाएंगी।
 
‘ओपन एआई’ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सैम ऑल्टमैन अपनी कंपनी की ओर से खर्च की जाने वाली राशि के बारे में खुलकर बात करते रहे हैं। उन्होंने एक बार मजाक में कहा था कि ‘चैटजीपीटी’ किसी चैट में जब भी ‘कृपया’ या ‘धन्यवाद’ जैसे शब्द कहता है, तो कंपनी पर लाखों का खर्च आता है।
 
‘ओपनएआई’ को हर चैट पर प्रतिक्रिया देने में कितनी राशि खर्च करनी पड़ती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है, लेकिन ऑल्टमैन ने कहा था कि हर सवाल के साथ आने वाली उच्च कंप्यूटिंग लागत के कारण ‘पेड प्रो अकाउंट’ पर भी नुकसान झेलना पड़ता है।
 
‘पेड प्रो अकाउंट’ से आशय ऐसे अकाउंट से है, जिसमें उन्नत फीचर एवं सुविधाओं का इस्तेमाल करने के लिए शुल्क का भुगतान करने की जरूरत होती है।
 
------निवेश आकर्षित करने की रणनीति------
 
कई स्टार्टअप की तरह जनरेटिव एआई कंपनियां ने भी कमाई के लिए पारंपरिक रणनीति अपनाई है : पैसे खर्च कर उपयोगकर्ताओं को ऐसे उत्पाद की सेवाएं लेने के लिए आकर्षित करना, जिसे वे हर हाल में इस्तेमाल करना चाहते हैं।
हालांकि, ज्यादातर कंपनियां उच्च लागत वाले उत्पाद बनाकर सफल नहीं हुई हैं, बल्कि उन्हें कम लागत वाले उत्पादों से फायदा मिला है, जिन्हें बड़े पैमाने पर उपयोगकर्ता इस्तेमाल करना चाहते हैं। ऐसे उत्पादों का वित्तपोषण मुख्यतः विज्ञापन से अर्जित आय से होता है।
 
जब कंपनियां ज्यादा कमाई के उपाय तलाशने लगती हैं, तो नतीजा वही होता है, जिसे पत्रकार और लेखक कोरी डॉक्टरो ने “एनशिटिफिकेशन” की संज्ञा दी थी यानी समय के साथ मंच का धीरे-धीरे पतन। जनरेटिव एआई के मामले में मंचों का पतन तब होने लगता है, जब वे मुफ्त सेवाएं देने से होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए विज्ञापनों की संख्या बढ़ाने लगती हैं।
 
‘ओपन एआई’ आने वाले समय में ‘चैटजीपीटी’ में विज्ञापन शामिल करने पर विचार कर रही है। हालांकि, कंपनी का कहना है कि वह इस बारे में “बहुत सोच-समझकर और रुचिपूर्ण तरीके से” काम कर रही है।
 
बहरहाल, यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि उक्त रणनीति जनरेटिव एआई के मामले में कारगर होगी या नहीं। संभव है कि विज्ञापन से इतनी कमाई न हो कि जनरेटिव एआई ऐप के संचालन के लिए जरूरी भारी-भरकम खर्च को जायज ठहराया जा सके।
 
------एआई मॉडल की छिपी लागत------
 
जनरेटिव एआई के समक्ष एक और उभरती चुनौती ‘कॉपीराइट’ है। ज्यादातर एआई कंपनियां या तो बिना अनुमति के सामग्री का इस्तेमाल करने या सामग्री के लाइसेंस के लिए महंगे अनुबंध करने को लेकर मुकदमों का सामना कर रही हैं।
 
जनरेटिव एआई ने कई आपत्तिजनक तरीके अपनाकर “विषय सामग्री तैयार करने और उपयुक्त प्रतिक्रिया देने की कला सीखी” है, जिसमें कॉपीराइट वाली किताबें पढ़ना और ऑनलाइन कही गई लगभग हर बात को खंगालना शामिल है। एक मॉडल हैरी पॉटर शृंखला के पहले उपन्यास के 42 फीसदी हिस्से पलक झपकाते आपके सामने पेश कर सकता है।
 
कंपनियों को कॉपीराइट संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने और उत्पादों को सुरक्षित करने के लिए प्रकाशकों एवं रचनाकारों को भुगतान करने तथा अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए भारी-भरकम राशि खर्च करनी पड़ती है, जो अंततः उन पर “वित्तीय बोझ” और बढ़ा देता है।
 
अमेरिका के एआई स्टार्टअप ‘एंथ्रोपिक’ ने अपने मॉडल को प्रशिक्षित करने के लिए लेखकों को प्रति किताब 3,000 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करने की पेशकश की, जिससे प्रस्तावित समझौता की राशि 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गई। लेकिन अदालतों ने इसे बहुत सरल बताकर तुरंत खारिज कर दिया। ‘एंथ्रोपिक’ का मौजूदा मूल्यांकन 183 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो जल्द ही मुकदमों में खर्च हो सकता है।
 
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि जनरेटिव एआई बेहद महंगा है और यह एक ‘जहरीली परिसंपत्ति’ बनता जा रहा है, जो उपयोगी तो है, लेकिन आर्थिक पहलू पर कोई लाभ नहीं देता।
 
------सस्ता या मुफ्त जनरेटिव एआई------
 
‘मेटा’ ने अपने जनरेटिव एआई मॉडल ‘लामा’ को संभवतः रणनीतिक तौर पर ‘ओपन सोर्स’ (सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए मुफ्त में उपलब्ध) मंच के रूप में जारी किया है। यह कदम चाहे प्रतिद्वंद्वियों को परेशान करने के लिए उठाया गया हो या एक अलग नैतिक रुख का संकेत देता हो, लेकिन इसका मतलब यह है कि अच्छे कंप्यूटर से लैस कोई भी व्यक्ति ‘लामा’ के स्थानीय संस्करण का मुफ्त में इस्तेमाल कर सकता है।
 
‘ओपन सोर्स’ एआई मॉडल की पेशकश बाजार में अपनी हिस्सेदारी पक्की करने के लिए अपनाई गई एक और कॉर्पोरेट रणनीति है, जिसके कुछ अजीबोगरीब ‘साइड-इफेक्ट’ भी हैं। ये मॉडल ‘जेमिनी’ या ‘चैटजीपीटी’ जितने उन्नत तो नहीं हैं, लेकिन उम्मीदों पर बहुत हद तक खरे उतरते हैं और मुफ्त में उपलब्ध भी हैं (या कम से कम व्यावसायिक मॉडलों से सस्ते जरूर हैं)।
 
‘ओपन सोर्स’ एआई मॉडल ने शेयर बाजार में एआई कंपनियों के प्रदर्शन को प्रभावित किया है। चीनी कंपनी ‘डीपसीक’ ने जब एक ‘ओपन सोर्स’ मॉडल जारी किया, जिसका प्रदर्शन व्यावसायिक मॉडल जितना ही अच्छा था, तो एआई कंपनियों के शेयर की कीमतों में कुछ समय के लिए भारी गिरावट आई।
 
‘डीपसीक’ के उद्देश्य अस्पष्ट हैं, लेकिन इसकी सफलता से यह चिंता गहरा रही है कि क्या जनरेटिव एआई उतना मूल्यवान है, जितना उसे माना जाता है।
 
औद्योगिक प्रतिस्पर्धा की उपज ‘ओपन सोर्स’ एआई मॉडल सब जगह उपलब्ध हैं और इन तक पहुंच आसान होती जा रही है। ऐसे मॉडल की लोकप्रियता और सफलता बढ़ने पर एआई कंपनियों के लिए मुफ्त विकल्पों के मुकाबले शुल्क वाली सेवाएं बेचना मुश्किल हो सकता है।
 
निवेशक भी व्यावसायिक एआई को लेकर ज्यादा सतर्क हो सकते हैं, क्योंकि उनमें लगाई गई शुरुआती पूंजी के भी डूबने का खतरा हो सकता है। अगर ‘ओपन सोर्स’ मॉडल पर मुकदमा चलाकर उन्हें प्रतिबंधित भी कर दिया जाता है, तो भी उन्हें इंटरनेट से हटाना बहुत मुश्किल होगा।
 
------ज्ञान से कीमती कोई चीज नहीं------
 
जनरेटिव एआई के घाटे का सौदा साबित होने की आशंका इस बात को मान्यता दे सकती है कि ज्ञान अमूर्त रूप से मूल्यवान है। सर्वोत्तम जनरेटिव एआई मॉडल भी दुनियाभर में उपलब्ध ज्ञान के भंडार से प्रशिक्षण लेते हैं-इतनी अधिक जानकारी कि उसकी असली कीमत का अनुमान लगाना असंभव हो सकता है।
 
अगर जनरेटिव एआई स्थायी मुनाफा नहीं कमा पाता है, तो नतीजे संभवत: मिले-जुले होंगे। एआई कंपनियों के साथ अनुबंध पर विचार करने वाले ‘कंटेंट क्रिएटर’ को नुकसान झेलना पड़ सकता है; अगर उनके मॉडल ‘घाटे का सौदा’ साबित हुए, तो ‘ओपनएआई’, ‘एंथ्रोपिक’ या गूगल से उन्हें कोई बड़ा भुगतान नहीं मिलेगा।
 
व्यावसायिक जनरेटिव एआई का विकास भी ठप पड़ सकता है, जिससे उपभोक्ताओं के पास ऐसे “अच्छे” उत्पाद बच सकते हैं, जिनका इस्तेमाल मुफ्त है। ऐसी स्थिति में, एआई कंपनियां कम महत्वपूर्ण हो सकती हैं और तकनीक थोड़ी कम शक्तिशाली हो सकती है, जो कुछ मायने में ठीक भी है। (द कन्वरसेशन) भाषा Edited by : Sudhir Sharma

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