'उत्तम क्षमा' का विनम्र उत्सव

क्षमा माँगने का पर्व है पर्युषण

राजश्री कासलीवाल
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पर्युषण पर्व हमारे आराधना और उपासना का पर्व है। वर्ष भर तो समय की समस्या रहती है परन्तु इन दिनों समय निकाल कर प्रभु के दर्शन, वंदन और पूजन करने का सत्कार्य हमें अवश्य करना चाहिए। दसलक्षण का यह पर्व अंतरात्मा को जागृत करने का पर्व है। संपूर्ण दुनिया में पर्युषण ही ऐसा पर्व है जो हाथ मिलाने और गले लगने का नहीं, पैरों में झुककर माफी माँगने की प्रेरणा देता है।

जो व्यक्ति गलती या वैर-विरोध हो जाने पर तुरंत क्षमा माँग लेता है उसे पूरे वर्ष में एक बार नहीं, 365 बार क्षमा करने और माँगने का सौभाग्य मिल जाता है। वर्ष भर छोटे बड़ों को प्रणाम करते हैं पर एकमात्र पर्युषण पर्व ऐसा है जिसमें क्षमा पर्व के दिन सास बहू को, पिता-पुत्र को बड़े-छोटों को प्रणाम करने के लिए अंत:प्रेरित हो उठते हैं।

हमें भगवान ने मनुष्य जन्म दिया है और हम अपने कर्मों की श्रेष्ठता से ही इस जीवन यात्रा को सुंदर बना सकते हैं, वह इसलिए कि पिछले जन्म में किए गए श्रेष्ठ कर्मों से ही हमें दोबारा यह मनुष्य जन्म मिला है। मनुष्य ही ऐसा जीव है, जिसे प्रभु ने बुद्धि दी है। बुद्धि की मदद से किए गए कर्मों के कारण ही मानव को प्रभु की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा गया है। इसलिए हमारे कर्म धर्म, शास्त्रों और हमारे पद-प्रतिष्ठा को गौरवान्वित करें ऐसे होने चाहिए।

इसके लिए हमें सबसे पहले प्रेम का विस्तार करना चाहिए। जिस परिवार में सभी सदस्य आपस में मिलकर रहते हैं, एक-दूसरे के प्रति सम्मान का भाव रखते हैं, परस्पर सहयोग करते हैं वह परिवार सदा सुखी रहता है। उसे न निर्धनता दुःख देती है और न ही वह कष्टों से विचलित होता है। हमें सदैव प्रेम का विस्तार करते रहना चाहिए।

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हम जिस समाज में, जिस मोहल्ले, जिस स्थान पर रहते हैं वहाँ यह सत्य भी हमें मानना ‍चाहिए कि लड़ाई-झगड़े, मनमुटाव होते रहते है। लेकिन उसका मतलब यह कतई नहीं निकलता कि आप घर के, आसपास के सदस्यों, रिश्तेदारों का सम्मान करना ही भूल जाए। दिन-रात होने वाली गलतियों से सबक लेने के लिए ही हर साल पयुर्षण पर्व एक ऐसा अवसर आता है जब हम क्षमा और प्रेम की सीढ़ी चढ़कर, मन में प्यार, शांति, सम्मान, और क्षमा का भाव रखकर दुनिया में इतिहास रच सकते हैं।

काम, क्रोध, माया, लोभ, अहं, ईर्ष्या, दूसरों का बुरा सोचना और करना यह सब कर्म हमें नरक गति की ओर ले जाते है। इन सभी चीजों का त्याग करके हमें क्षमा रूप धारण करना चाहिए। हमेशा अपने मन में क्षमा भाव रखकर छोटे हो या बड़े सभी के प्रति एक समान दृष्‍टि रखते हुए अपने कदम क्षमा के रास्ते पर बढ़ाते रहना चाहिए।

हर वर्ष आने वाला पयुर्षण पर्व हमें अपनी गलतियों से सीख लेने, दोबारा वहीं गलती न दोहराने और अपने जीवन संबंधी होने वाली घटनाओं से सचेत करता रहता है। यह इस पर्व के दस दिनों में क्षमा, मार्दव(अहंकार), आर्जव(सरल बनना), शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, अकिंचन और ब्रह्मचर्य ये ही दसलक्षण धर्म के सर्वोच्च गुण हैं। जो पर्युषण पर्व के रूप में आकर हमें पूरे देशव‍ासियों, प‍ारिवारिकजनों और जैन धर्मावलंबियों और प्राणी मात्र के प्रति सुख-शांति का संदेश देते हुए सभी को क्षमा करने और क्षमा माँगने की प्रेरणा देते हैं।

ये पर्व आपको कर्मबंध के जाल से दूर रखने का प्रयास करते हैं और अपने जीवन के तपरूपी महापर्व को हमारे समक्ष खड़ा करके हमें ‍‍जीवन में दोबारा होने वाली गलतियों से क्षमा माँगने और उससे उबरकर अपने जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा देते है। आइए,इस क्षमा पर्व का लाभ उठाएँ। सबसे हाथ जोड़कर क्षमा माँगे और हम सभी मिलकर दसलक्षण के इस महापर्व का आनंद उठाएँ।

अंत में सभी को जय जिनेंद्र! 'उत्तम क्षमा'....!

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