उत्तम सत्य

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सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।

हमें कठोर, कर्कश, मर्मभेदी वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जब भी बोलें हित मित प्रिय वचनों का प्रयोग अपने व्यवहार में लाना चाहिए तथा कहा भी गया है- ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहुँ शीतल होय।। कठोर वचन सत्य की श्रेणी में नहीं आते। सत्य का संबंध तो अहिंसा से है।

अहिंसा सत्य को सौंदर्य प्रदान करती है और सत्य ‍अहिंसा की सुरक्षा करता है। अहिंसा रहित सत्य कुरूप है और सत्य रहित अहिंसा क्षणस्थायी है। अहिंसा और सत्य एक सिक्के के दो पहलू है अहिंसा के अभाव में सत्य एवं सत्य के अभाव में अहिंसा की स्थिति नहीं है। नीतिकारों ने कहा है कि सत्य गले का आभूषण है, सत्य से वाणी पवित्र होती है जैसे स्नान करने से शरीर निर्मल हो जाता है।
  सत्य बोलो और धर्म का आचरण करो। क्रोध, लोभ, भय और हँसी-मजाक आदि के कारण ही झूठ बोला जाता है। जहाँ न झूठ बोला जाता है, न ही झूठा व्यवहार किया जाता है वही लोकहित का साधक सत्यधर्म होता है।      


साबुन से वस्त्र स्वच्छ होता है। वैसे ही वाणी सत्य से निर्मल होती है। सत्य पर सारे तप निर्भर करते हैं। जिन्होंने सत्य का पालन किया, वे इस संसार से पार हो गए, मुक्त हो गए। सत्य ही संसार में श्रेष्ठ है। सत्यवादी की जग में सदा ही विजय होती है। इसीलिए कहा है सत्य मेव जयते। अत: हमें अपने जीवन में सदा सत्य का पालन करना चाहिए और सदा ही यह भावना रखनी चाहिए-

फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे।
अप्रिय, कटुक, कठोर, शब्द नहीं कोई मुख से कहा करे।।
नहीं सताऊँ किसी जीव को झूठ कभी नहीं कहा करूँ।

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