क्षमा धर्म धारण करें : मुनि सौरभ सागर

क्रोध अग्नि है, क्षमा पानी

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जब तुम्हें सारा विश्व मित्र लगे, तब समझना कि तुम्हारे जीवन में क्षमा का जागरण हो गया है। अतीत की भूलों के प्रायश्चित का नाम है क्षमा। हार्दिकता की उदारता का नाम है क्षमा। क्रोध अग्नि है और क्षमा पानी है।

क्षमा रूपी जल को धारण करने वाले के पास किसी भी प्रकार के क्रोध के अंगारे आएं, वे सब स्वतः ही कुछ समयोपरांत बुझ जाते हैं। जिस प्रकार कड़वा नीम मुख के स्वाद को खराब कर देता है, वैसे ही क्रोध भी जीवन को खराब कर देता है।

एक कुत्ता भी अगर किसी कुएं में गिर जाए तो सतत निकलने का प्रयास करता है, झटपटाता रहता है, लेकिन इंसान अनादिकाल से इस संसार रूपी कुएं में पड़ा है, लेकिन निकलने के लिए झटपटा रहा है। तुम्हारे वैराग्य के भाव यदि नहीं जाग रहे तो समझ लो कि तुम्हारा मोहनीय कर्म का तीव्र उदय है।

उन्होंने कहा कि क्षमावाणी पर्व के महान अवसर पर तुम अपने अहंकार को त्याग दो, क्योंकि क्षमा मांगने और बांटने से व्यक्ति छोटा नहीं, बल्कि महान होता है। यदि अंतरंग से क्षमा नहीं हुई तो क्षमा मांगना व्यर्थ है। लोक हित से क्षमा नहीं मांगी जाना चाहिए।

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श्रमण संस्कृति ने विश्व को अहिंसा, शांति और मैत्री का संदेश दिया है। हिंसा और व्यसनों के कारण व्यक्ति का जीवन अशांत व तनावग्रस्त बना हुआ है। जीवन में सफलता के लिए हम सही रास्ता चुनें और उस पर चलने का प्रयास करें। हिंसा की राह से शांति की मंजिल नहीं मिलेगी।

जैन धर्म का यह संदेश है कि धन का संग्रह करने की बजाए उसे सेवा के कार्यों में उदारतापूर्वक समर्पित करें। जीव दया के प्रति अधिक से अधिक योगदान करें। तभी मनुष्य का कल्याण संभव है।

क्षमा दान महादान है। जाने-अनजाने में किसी से कोई भूल हो जाती है तो क्षमा करने वाला महान होता है। संसार का प्रत्येक प्राणी यदि अपने हृदय में सच्ची क्षमा धारण कर लें तो ईर्ष्या बैर, संघर्ष, मन-मुटाव का झगड़ा ही समाप्त हो जाएगा। यदि हम शांति चाहते हैं तो क्षमा धर्म को ही धारण करना होगा, अन्य कोई उपाय विश्व शांति के लिए नहीं है।

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