धर्म-ध्यान के लिए है चातुर्मास: दर्शनसागरजी

- कौशल जैन

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उपसर्ग विजेता, सन्मार्ग दिवाकर, ऋषि रत्न जैसी अनेक उपाधियों से विभूषित नवग्रह जिनालय के प्रणेता दिगंबर जैन संत आचार्य दर्शनसागरजी महाराज के 63वें जन्मोत्सव के अवसर पर उनसे चर्चा की गई। चातुर्मास, भक्तामर अखंड पाठ, त्रिकाल चौबीसी के निर्माण संबंधी अनेक विषयों पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें बताई।

प्रश्न- चातुर्मास की क्या महत्ता है?

आचार्यश्री- चातुर्मास के दिनों में सूक्ष्म जीवों की हिंसा न हो तथा श्रावक साधु के सान्निध्य में रहकर अपना धर्म-ध्यान कर सकें इसलिए चातुर्मास किया जाता है।

प्रश्न- चातुर्मास के लिए इंदौर को क्यों चुना?

आचार्यश्री- इस शहर में जैन परिवार बहुतायत में हैं जो कि वर्तमान भौतिक वातावरण में भी धार्मिक कार्यों में संलग्न हैं। यहाँ के लोगों की धर्म के प्रति आस्था एवं ज्ञान पिपासा को देखते हुए मैंने यह निर्णय लिया।

प्रश्न- आपके सान्निध्य में शहर में पहली बार आयोजित 48 दिवसीय भक्तामर के अखंड पाठ का उद्देश्य क्या था?

आचार्यश्री- आचार्य मानतुंग स्वामी को 48 तालों के अंदर बंद किया गया था। एक-एक श्लोक की रचना कर उन्होंने उन 48 तालों को तोड़ा। प्रत्येक श्लोक ऋद्घि मंत्र को बताता है जो हम संसारी प्राणियों के लिए भी मुक्ति का दायक है। उसी भाव से मैंने 48 दिन का अखंड पाठ यहाँ करवाया।

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प्रश्न- आपने नवग्रह जिनालय की स्थापना किन कारणों से की?

आचार्यश्री-वर्तमान में प्रत्येक प्राणी अपनी ग्रह दशा को लेकर चिंतित है। जैन दर्शन में इसके लिए चौबीस तीर्थंकरों की आराधना की जाती है जो नवग्रह में समाहित है। अतः भगवान की शरण में बैठकर अपने ग्रहों की शांति हेतु एक नियत स्थान मिल सके, इसके लिए नवग्रह जिनालय की स्थापना की गई।

प्रश्न- आपने अब तक कितने विधान एवं पंच कल्याणक प्रतिष्ठाएँ कराईं?

आचार्यश्री- मेरे चालीस वर्ष के दीक्षा काल में अनगिनत विधान हुए हैं। मात्र इन्द्रध्वज महामंडल विधान ही 600 से अधिक बार संपन्नहुए हैं। लघु एवं वृहत पंचकल्याणक की अभी तक 182 प्रतिष्ठाएँ करा चुका हूँ। 183वीं प्रतिष्ठा नवंबर में कालानी नगर में होगी।

प्रश्न- त्रिकाल चौबीसी के निर्माण का उद्देश्य क्या है?

आचार्यश्री - जैन मान्यतानुसार 24 तीर्थंकर भूतकाल में भी हुए हैं, वर्तमान में भी हैं तथा भविष्य में भी होंगे। इन सभी की आराधना एक साथ की जा सके इसलिए इसका निर्माण कराया जा रहा है। इसकी परम्परा भरत चक्रवर्ती के समय से है।

प्रश्न- जन्म जयंती की सार्थकता क्या है ?

आचार्यश्री- प्रायः हम सभी महापुरुषों की जन्म जयंती इसलिए मनाते हैं ताकि उनके जीवन मे किए गए महान कार्यों का स्मरण कर अपने जीवन में सुधार ला सकें। इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए संतों की जन्मजयंती मनाई जाती है, जिसमें संत यह भावना करते हैं कि मेरा शेष बचा हुआ जीवन सम्यक पथ पर अग्रसर हो तथा यह मेरा अंतिम जीवन हो। मैं मोक्ष में विश्राम कर सकूँ।

प्रश्न- पिच्छी पर राखी क्यों बाँधी जाती है?

आचार्यश्री- धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए पिच्छी पर पाँच रंग का नाड़ा या राखी श्रावक द्वारा बाँधी जाती है।

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