महावीर और अहिंसा

धर्म मंगल है। कौन-सा धर्म?

अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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वेदों में अहिंसा के सूत्र मिलते हैं। कई अन्य अहिंसक लोग भी हुए हैं। अहिंसा पर प्रवचन देने वाले भी अनेक हैं, लेकिन महावीर सबसे अलग हैं और उनकी अहिंसा की धारणा भी कहीं ज्यादा संवेदनशील है। संसार के प्रथम और अंतिम व्यक्ति हैं भगवान महावीर, जिन्होंने अहिंसा को बहुत ही गहरे अर्थों में समझा और जिया।

त्याग करने में हिंसा है लेकिन त्याग होने में नहीं अर्थात 'छोड़ने' और 'छूट जाने' के फर्क को समझें। भगवान महावीर ने अपने जीवन में कभी कुछ नहीं छोड़ा, जबकि उनसे सब कुछ छूट गया। अन्न-जल को छोड़ा नहीं, जबकि वे स्वयं में इतने आनंदित रहते थे कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहता था कि कुछ खाना है।

अन्न-जल का त्याग करके शरीर को कष्ट देना भी तो हिंसा है। महावीर ने अपने शरीर को कभी कष्ट नहीं दिया। कहते हैं कि एक दिन जंगल से गुजरते समय रास्ते की कँटीली झाड़ी में उनका वस्त्र उलझ गया और वह शरीर से सरककर छूट गया। शरीर ने भी इस बात की उन्हें स्वीकृति दे दी थी कि अब आप मुझे बगैर कपड़े के भी रख सकते हैं।

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कहते हैं कि पूर्ण वैराग्य का भाव उपजने के कारण उन्होंने माँ से कहा- 'माते मुझे संन्यस्त होना है, अब मैं जंगल जाना चाहता हूँ, आपकी आज्ञा हो तो जाऊँ। माँ ने कहा- 'पागल हो क्या? ये कोई उम्र है संन्यास की। नहीं जाना।'

महावीर मौन रह गए। उनका घर में रहना, नहीं रहने जैसा ही था। दो वर्ष बाद माँ ने कहा-'लगता है कि मैंने तुम्हें मना करके कष्ट दिया है। चाहो तो तुम जा सकते हो। महावीर फिर भी मौन रह गए, क्योंकि यदि वे यह कहते कि 'हाँ' तो माँ को यह जानकर कष्‍ट होता कि मैंने अपने बेटे को कष्ट दिया। सौ महायुद्ध के पाप से बढ़कर है माँ को कष्ट देना। महावीर ऐसा अपराध नहीं कर सकते थे। और यदि वे कहते 'नहीं कष्ट नहीं दिया' तो इससे यह सिद्ध होता कि दो वर्ष तक उन्होंने स्वयं को कष्ट दिया।

ऐसे में वे मौन रह गए। फिर माता-पिता के देहांत के बाद बड़े भाई नंदिवर्धन के अनुरोध पर वे दो बरस तक घर पर रहे। बाद में सभी की राजी-खुशी से तीस बरस की उम्र में श्रमण परंपरा में श्रामणी दीक्षा ले ली।

सबके मंगल के साथ हमारा अमंगल न हो, यही धर्म है। इसीलिए कहते हैं कि धर्म मंगल है। कौन-सा धर्म? जो न दूसरों पर और न ही स्वयं पर हिंसा होने दे, वही अहिंसक धर्म ही मंगल है। महावीर दुनिया के पहले ऐसे व्यक्ति हैं जो अहिंसा के रास्ते पर चलकर अरिहंत हुए। महावीर की अहिंसा को समझना आसान नहीं है। अहिंसकों में वे इस तरह हैं जैसे कि पर्वतों में हिमालय।
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