संयम और तप

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तमाहु लोए पडिबुद्ध जीवी।
सो जीयइ संजम जीविएण॥

इस लोक में सदा जागने वाला वही है, जो संयमी जीवन बिताता है।

तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अबम्भसेवणं।
इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए॥
महावीरजी कहते हैं जो पुरुष संयमी हो उसे इन चीजों को छोड़ना पड़ता है- हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, भोग की लिप्सा और लोभ।

तप :

तवो य दुविहो वुत्तो बाहिरब्भन्तरो तहा।
बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भन्तरो तवो॥

तप दो तरह का होता है- 1. बाहरी और 2. भीतरी। बाहरी तप 6 तरह का है, भीतरी तप भी 6 तरह का ही होता है।

अणसणमूणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ।
कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होई॥
अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, कायक्लेश और संलीनता बाहरी तप हैं।

पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ।
झाणं उस्सग्गो वि य अब्भिंतरो तवो होई॥
प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य- देव, गुरु और धर्म की सेवा, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग- आत्मभाव में रमना भीतरी तप है।

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