जैन धर्म के 24 तीर्थंकर है। प्रथम ऋषभनाथ हैं तो अंतिम महावीर स्वामी। भगवान पार्श्वनाथ 23वें तीर्थंकर थे और उनकी जयंती पौष कृष्ण पक्ष की दशमी को मनाई जाती है। आओ जानते हैं उनके बारे में 10 खास बातें।
1. भगवान पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। आपके पिता का नाम राजा अश्वसेन तथा माता का नाम वामा था। पिता वाराणसी के राजा थे। प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ।
2. आपका जन्म पौष कृष्ण पक्ष की एकादशी को वाराणसी (काशी) में हुआ था। उनका जन्म लगभग 872 ईसापूर्व का माना जाता है।
3. युवावस्था में कुशस्थल देश की राजकुमारी प्रभावती के साथ आपका विवाह हुआ।
4. पार्श्वनाथजी तीस वर्ष की आयु में ही गृह त्याग कर संन्यासी हो गए। पौष माह की कृष्ण एकादशी को आपने दीक्षा ग्रहण की। 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन उन्हें चैत्र कृष्ण चतुर्थी को सम्मेद पर्वत पर 'घातकी वृक्ष' के नीचे कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। श्रावण शुक्ल की सप्तमी को पारसनाथ पहाड़ पर निर्वाण हुआ था। इस पहाड़ को सम्मेद शिखर कहा जाता है। यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है।
5. जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी। इनके शरीर का वर्ण नीला जबकि इनका चिह्न सर्प है। पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम पार्श्व और यक्षिणी का नाम पद्मावती देवी था।
6. भगवान महावीर इन्हीं के संप्रदाय से थे। पार्श्वनाथ संप्रदाय। वे भगवान महावीर से लगभग 250 वर्ष पूर्व हुए थे। कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व अर्थात 777 ई. पूर्व हुआ था।
7. पार्श्वनाथ वास्तव में ऐतिहासिक व्यक्ति थे। उनसे पूर्व श्रमण धर्म की धारा को आम जनता में पहचाना नहीं जाता था। पार्श्वनाथ से ही श्रमणों को पहचान मिली।
8. कैवल्य के पश्चात्य चातुर्याम (सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह) की शिक्षा दी। ज्ञान प्राप्ति के उपरांत सत्तर वर्ष तक आपने अपने मत और विचारों का प्रचार-प्रसार किया तथा सौ वर्ष की आयु में देह त्याग दी।
9. पार्श्वनाथ ने चार गणों या संघों की स्थापना की। प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था। उनके गणधरों की संख्या 10 थीं। आर्यदत्त स्वामी इनके प्रथम गणधर थे। उनके अनुयायियों में स्त्री और पुरुष को समान महत्व प्राप्त था। सुपार्श्व तथा चन्द्रप्रभा का जन्म काशी में ही हुआ था। सारनाथ जैन-आगम ग्रंथों में सिंहपुर के नाम से प्रसिद्ध है। यहीं पर जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ ने जन्म लिया था और अपने अहिंसा धर्म का प्रचार-प्रसार किया था।
10. पार्श्वनाथ की जन्मभूमि के स्थान पर निर्मित मंदिर भेलूपुरा मोहल्ले में विजय नगरम् के महल के पास स्थित है। सिर के ऊपर तीन, सात और ग्यारह सर्पकणों के छत्रों के आधार पर मूर्तियों में इनकी पहचान होती है। काशी में भदैनी, भेलूपुर एवं मैदागिन में पार्श्वनाथ के कई जैन मन्दिर हैं।