बौद्घ धर्म की तरह जैन धर्म में भी वेद और वर्ण धर्म को नहीं माना जाता। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के पहले से ही जैन धर्म का प्रादुर्भाव हो चुका था।
जैन तीर्थंकर व बौद्घ धर्म की मूर्तियों में समानता होती है। लेकिन जैन तीर्थंकरों के वक्ष के मध्य में श्रीवत्स होता है। प्रायः सिर के ऊपर तीन क्षत्र होते हैं। जैन धर्म के देवताओं में 21 लक्षणों का वर्णन आता है। जिसमें धर्म, चक्र, चँवर, सिंहासन, तीन क्षत्र, अशोक वृक्ष आदि प्रमुख है।
सिरपुर में पूर्व में उत्खनन से मिली जैन धर्म से संबंधित मूर्तियाँ लक्ष्मण मंदिर परिसर में स्थित संग्रहालय में रखी गई है। अलबत्ता डॉ. शर्मा ने बताया कि उनके उत्खनन से सिरपुर में 3 जैन विहार तथा पार्श्वनाथ की 3 मूर्तियाँ प्राप्त हो चुकी है। जिनमें 7 फीट 4 इंच ऊँची (सबसे ऊँची) प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। सिर के पीछे 7 फनवाले नाग देवता हैं। शेष 2 मूर्तियाँ इससे नाम मात्र की छोटी है।
सिरपुर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा मिलने से ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी या भगवान पार्श्वनाथ के समय से ही सिरपुर में जैन धर्म का प्रादुर्भाव हो चुका था। यद्यपि सिरपुर में उत्खनन से अभी तक छठवीं शताब्दी तक के प्रमाण मिले हैं।