छठवीं शताब्दी की जैन मूर्तियों का इतिहास

बौद्घों से पूर्व था जैन धर्म का अस्तित्व

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सिरपुर में उत्खनन से मिले तीन जैन विहार सात वाहन काल के भी नीचे की सतह से मिले हैं। जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि बौद्घ धर्म के आगमन से पूर्व ही सिरपुर में जैन धर्म के अनुयायी आ गए थे। ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी न सही तो भी ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में जब सिरपुर में व्यापार चरम सीमा पर था तो वहाँ जैन धर्म की स्थापना हो चुकी थी।

सिरपुर में पिछले 10 वर्षों से भी अधिक समय से उत्खनन कर रहे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधीक्षण पुरातत्वविद् एवं छग शासन के पुरातत्वीय सलाहकार डॉ. अरुण कुमार शर्मा जारी उत्खनन से मिल रहे नए-नए प्रमाणों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं।

डॉ. शर्मा ने कहा कि जैन धर्म के अधिकांश अनुयायी व्यापारी वर्ग के होते हैं। लिहाजा जब सिरपुर में इतना बड़ा व्यापारिक केंद्र था तो वहाँ जैन धर्म का आना असंभव बात नहीं है।

डॉ. शर्मा ने बताया कि जैन धर्म अवैदिक दर्शन शास्त्र है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का वर्णन विष्णु व भागवत पुराण में आता है। जबकि यजुर्वेद में ऋषभनाथ, अजीतनाथ और अरिष्ठनेमी तीर्थंकरों का नाम आता है। जैन धर्म का सर्वाधिक प्रचलन पार्श्वनाथ के समय हुआ, जो जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं। जिनका काल ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी माना जाता है।
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बौद्घ धर्म की तरह जैन धर्म में भी वेद और वर्ण धर्म को नहीं माना जाता। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के पहले से ही जैन धर्म का प्रादुर्भाव हो चुका था।

जैन तीर्थंकर व बौद्घ धर्म की मूर्तियों में समानता होती है। लेकिन जैन तीर्थंकरों के वक्ष के मध्य में श्रीवत्स होता है। प्रायः सिर के ऊपर तीन क्षत्र होते हैं। जैन धर्म के देवताओं में 21 लक्षणों का वर्णन आता है। जिसमें धर्म, चक्र, चँवर, सिंहासन, तीन क्षत्र, अशोक वृक्ष आदि प्रमुख है।

सिरपुर में पूर्व में उत्खनन से मिली जैन धर्म से संबंधित मूर्तियाँ लक्ष्मण मंदिर परिसर में स्थित संग्रहालय में रखी गई है। अलबत्ता डॉ. शर्मा ने बताया कि उनके उत्खनन से सिरपुर में 3 जैन विहार तथा पार्श्वनाथ की 3 मूर्तियाँ प्राप्त हो चुकी है। जिनमें 7 फीट 4 इंच ऊँची (सबसे ऊँची) प्रतिमा कायोत्सर्ग मुद्रा में है। सिर के पीछे 7 फनवाले नाग देवता हैं। शेष 2 मूर्तियाँ इससे नाम मात्र की छोटी है।

सिरपुर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा मिलने से ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी या भगवान पार्श्वनाथ के समय से ही सिरपुर में जैन धर्म का प्रादुर्भाव हो चुका था। यद्यपि सिरपुर में उत्खनन से अभी तक छठवीं शताब्दी तक के प्रमाण मिले हैं।

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