नवीन बही मुहूर्त विधि

दीपमालिका-विधान

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प्रात:काल जिनेन्द्र भगवान के दर्शन-पूजन करने मंदिर जाने के‍ पहले अथवा मंदिर से आने के पश्चात अपने घर पर 'ॐ ह्रीं अर्हं अ सि आ उ सा श्री महावीर जिनेन्द्राय नम:।' मंत्र की एक माला तथा महावीराष्टक स्रोत का पाठ करना चाहिए।

सायंकाल को उत्तम गोधूलिक लग्न में अथवा दिन के समय भी अपनी दुकान के पवित्र स्थान पर एक ऊँची चौकी पर रकाबी (प्लेट) में विनायक यंत्र का आकार मांडकर ठोणे में रखकर विराजमान करें।

उसी चौकी के आगे दूसरी चौकी पर शास्त्रजी (जिनवाणी) विराजमान करना चाहिए। इन दोनों चौकियों के आगे एक छोटी चौकी पर पूजा की सामग्री (अष्टद्रव्य) तैयार रखें और उसी के पास एक दूसरी चौकी पर थाल में स्वस्तिक मांडकर पूजा की सामग्री चढ़ाने के लिए रखें।
बहियाँ, दवात-कलम आदि पास में रख लें। घी का दीपक दाहिनी ओर तथा बाईं ओर धूपदान करना चाहिए। दीपक में घृत इस प्रमाण से डालें कि रात्रिभर वह दीपक जलता रहे।
पूजा करने वाले को पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके पूजा करनी चाहिए। जो परिवार में बड़ा हो या दुकान का मालिक हो वह चित्त एकाग्र कर पूजा करे और उपस्थित सब सज्जनों को तिलक लगाना व दाहिने हाथ में कंकण बाँधना चाहिए। तिलक करते समय नीचे लिखा श्लोक पढ़ें-
मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् गौतमो गणी।
मंगलम् कुन्दकन्दाद्यो, जैन धर्मोंऽस्तु मंगलम्।।
तिलक करने के बाद नित्य-नियम-पूजा करके श्री महावीर स्वामी, श्री गौतम गणधर स्वामी तथा श्री सरस्वती देवी की पूजा करनी चाहिए।

नई बही मुहूर्त की सामग्र ी

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मंगल कलश, लाल कपड़ा, अष्टद्रव्य धुले हुए, धूपदान 1, दीपक 2, लालचोल 1 मीटर, सरसों 50 ग्राम, थाली 1, श्रीफल 1, लोटा जल का 1, लच्छा (मोली) 1 गट्टी, शास्त्र 1, धूप 50 ग्राम, अगरबत्ती, पाटे 2, चौकी 1, कुंकुम 50 ग्राम, केसर घिसी हुई, कोरे पान 5, दवात, कलम 2, नई बहियाँ।
सिंदूर-घी मिलाकर (श्री महावीराय नम: और लाभ-शुभ द ुका न की दीवार पर लिखने को) नई बहियाँ, माचिस, कपूर देशी, सुपारी आदि।

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