पर्वाधिराज पर्युषण

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- मुनिश्री सुमेरमलजी (लाडनूं)

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सभी धर्म संप्रदाय व्रतप्रधान हैं। जैन साधना पद्धति में भी अनुष्ठानों को स्थान है। इनके अनुष्ठानों में हिंसा का वर्जन कड़ाई से रहता है।

उपासना : पर्युषण श्वेतांबर जैनों का सर्वमान्य पर्व है। पर्व के स्वरूप में कोई अंतर नहीं। सभी इसे जप, तप, स्वाध्याय, ध्यान से मनाते हैं।

तप : पर्युषण में अनेक लोग आठ दिनों तक निराहार रहकर अठाई तप करते हैं। इन दिनों में पूरे जैन समाज में रात्रि भोजन का त्याग, आयंबिल, एकासन आदि का क्रम चलाया जाता है।

जप : पर्युषण में जप का विशेष प्रयोग किया जाता है। अनेक स्थानों में अखंड जप का आयोजन किया जाता है। प्रति घंटा जप करने वाले बदलते रहते हैं। जप का क्रम चौबीस घंटे विधिवत सतत चलता है।

प्रवचन : पर्युषण के दिनों में गाँव-गाँव, नगर-नगर में प्रवचनमालाओं का आयजोन किया जाता है। जहाँ साधु-साध्वियाँ न हो वहाँ विद्वानों, श्रावकों, मुमुक्षु बहनों, उपासकों के व्याख्यान का क्रम रखा जाता है। प्रायः प्रवचन में भगवान महावीर के जीवन का वर्णन किया जाता है।

ब्रह्मचर्य : इन दिनों में जैन गृहस्थों के लिए ब्रह्मचर्य की साधना को अनिवार्य माना गया है। पर्युषण के आठ दिन विशेष अनुष्ठानमूलक हैं। प्रत्येक जैन अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार कुछ न कुछ अनुष्ठान करता ही है। मौन, ध्यान, स्वाध्याय, खाद्य संयम के द्वारा अपने आपको विशेषरूप से साधते हैं। पर्युषण धर्म के पर्यावरण का पर्व है। कषायमुक्ति का पर्व है। सामायिक, संवर, पौषध की आराधना करने का पर्व है।

अमारी : प्राचीन समय में इन दिनों को राजकीय स्तर पर अमारी माना जाता था। राजा के द्वारा इसकी घोषणा भी की जाती थी। बादशाह अकबर जैसे सम्राट ने भी इन दिनों में शिकार तथा कसाईखाने को बंद रखने का आदेश जारी किया था। ऐसे अनेक राजाओं के उल्लेख इतिहास मेंमिलते हैं, जिन्होंने जीव हिंसा के निषेध की आज्ञा जारी की थी।

तेरापंथ में आठ दिवसीय पर्युषण पर्व और एक दिन क्षमा याचना का, यों नवाह्निक कार्यक्रम रखा जाता है। पिछले कई वर्षों से प्रतिदिन अलग-अलग उपासना करने का क्रम निर्धारित किया गया है। उसी क्रम से सर्वत्र व्यवस्थित एक जैसा अनुष्ठान चलता है। पर्युषण पर्व के इन दिनों में पूरे जैन समाज में एक विशेष हलचल रहती है। व्यवसाय आदि से यथाशक्य विरत होकर धार्मिक अनुष्ठान में ज्यादा से ज्यादा समय लगाते हैं।

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