महावीर ने किया भारतीय सभ्यता में क्रांतिकारी परिवर्तन

मानवीय मूल्यों के मंत्रोच्चारक महावीर

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जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म उस युग में हुआ जब अंधविश्वास का अंधकार बढ़ रहा था, कुरीतियों की कालिख गहरा रही थी, पशु बलि का पिशाच अपने हिंसक हाथों में क्रूरता की कलम लेकर संहार की स्याही से हत्या और हाहाकार का इतिहास लिख रहा था।

येन-केन प्रकारेण धन कमाने की लालसा ने अनैतिकता और आपाधापी की ऐसी आंधी उठा दी थी कि सात्विक संस्कार तिनकों की तरह तहस-नहस हो रहे थे। सभ्यता की सरिता और मनुजता की महानदी, हिंसा के प्रचंड ताप के कारण सूख जाएगी, परंतु तीर्थंकर महावीर के जन्म के बाद समाज की दशा और सभ्यता तथा संस्कृति की दिशा में क्रांतिकारी और उल्लेखनीय परिवर्तन आया।

प्रश्न यह उठता है कि महावीर स्वामी के जन्म के पूर्व जिस समाज को रूढ़ियों के राहु और कुप्रथाओं के केतु ने ग्रस रखा था, वह गिरावट के ग्रहण से कैसे मुक्त हुआ?

इसका स्पष्ट उत्तर है कि सिर्फ इसलिए कि महावीर स्वामी ने वैभव-विलास और भौतिकता की तृष्णाओं को तिलांजलि देकर त्याग और तपस्या के जिस कठिन मार्ग को अपनाकर अतुलित आत्मबल से अहिंसा की अर्चना तथा सत्य की साधना करके ब्रह्मचर्य, अचौर्य और अपरिग्रह का जो आदर्श प्रस्तुत किया, वह तत्कालीन दिग्भ्रांत समाज के लिए प्रेरणीय और अनुकरणीय हो गया।

एक ऐसा व्यक्ति, पीड़ित और अभावों से आहत होकर वैराग्य ग्रहण कर लेता है तो इसमें न तो कुछ उल्लेखनीय हैं, परंतु वर्द्धमान नाम का कोई राजकुमार, वैभव जिसके चंवर डुलाता हो, सुविधाएं जिसके पांव पखारती हों, ऐश्वर्य जिसकी आरती उतारता हो, वह यदि सब कुछ स्वेच्छा से छोड़कर, वैराग्य धारण करके वनविहारी हो जाता है, तो निस्संदेह यह घटना अलौकिक भी है, असाधारण भी।

वैभव को ठुकराने वाले विलास से विरक्त रहने वाले, आत्मसाधना के माध्यम से आत्मज्ञान और कैवल्य ज्ञान प्राप्त करने वाले, ऐसे राजकुमार ही वर्द्धमान से महावीर हो जाते हैं।

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उन्होंने अहिंसा और अपरिग्रह के जिन सिद्धांतों पर जोर दिया, उन्हें पहले अपने आचरण और व्यवहार में जिया। ब्रह्मचर्य, अचौर्य और सत्य की पैरवी करने के पूर्व उन्हें अपनी करनी से व्यक्त किया। उन्होंने हर आदर्श को पहले 'जिया तथा किया' और 'फिर कहा'। वे अनुकरणीय आदर्श के रूप में अभिनंदनीय और वंदनीय हो गए।

महावीर स्वामी की सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा यह है कि परस्पर प्यार के पुलों का निर्माण करो। हिंसा की ज्वाला में घृणा घी का काम करती है। महावीर स्वामी का कहना है कि सौहार्द की सुरक्षा और स्नेह के संस्कार का पोषण तभी हो सकता है जब हम भाव हिंसा से मुक्त रहें।

अपरिग्रह, तृष्णा की तूफानी नदी में सीमित आवश्यकताओं का लंगर डाले खड़ा हुआ, संयम का जहाज है। सत्य के संदर्भ में महावीर स्वामी की शिक्षा का सार यही है कि सत्य वह निर्मल और शीतल जलधारा है, जो कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) की आग को बुझा देती है। अचौर्य मुक्ति की मुंडेर पर रखा हुआ वह दीप है, प्रलोभन का झंझावात जिसे बुझा नहीं सकता।

ब्रह्मचर्य संबंधी महावीर स्वामी की शिक्षा का निष्कर्ष यही है कि ब्रह्मचर्य आत्मसाधना का पथ प्रशस्त करता है। समग्र रूप में यह कि तीर्थंकर महावीर की शिक्षाएं, वर्तमान विश्व की विकृतियों और व्याधियों को दूर करके अपरिग्रह के आंगन में ब्रह्मचर्य के बल से सत्य और अचौर्यके आधार अहिंसा की अगवानी करती हैं।

- अजहर हाशमी

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