शिलालेख

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संग्रहालय में कुछ जैन शिलालेख भी हैं, जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। एक शिलालेख उदयगिरि (जिला विदिशा) गुहा से उपलब्ध हुआ है, जो गुप्त संवत्‌ 106 (सन्‌ 425 ई.) का है। इसमें उल्लेख है कि कुरुदेश के शंकर स्वर्णकार ने कर्मारगण (स्वर्णकार संघ) के हित के लिए गुहा मंदिर में तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा का निर्माण कराया।

एक यज्वपाल वंश के असल्लदेव (नरवर) का शिलालेख है, जो विक्रम संवत्‌ 1319 (सन्‌ 1262) का है। इसमें गोपगिरि दुर्ग के माथुर कायस्थ परिवार की वंशावली दी गई है। सर्वप्रथम भुवनपाल का नाम है, जो धार-नरेश भोज का मंत्री था।

उसने जैन तीर्थंकर के मंदिर का निर्माण कराया, नागदेव ने उसमें तीर्थंकर प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराई और यह शिलालेख वास्तव्य कायस्थ (श्रीवास्तव) ने लिखा। उपरोक्त स्थापत्य एवं शिल्पकला की भव्यता के कारण गोपाचल कलाक्षेत्र की श्रेणी में अपना एक स्थान रखता है।

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