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Jammu and Kashmir Assembly Elections: अंतत: जमायते इस्लामी ने उम्मीदवार मैदान में उतारकर चुनौती पैदा कर ही दी

प्रतिबंधित जमायते इस्लामी के कई पूर्व सदस्यों ने नामांकन पत्र दाखिल किया

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सुरेश एस डुग्गर

जम्मू , बुधवार, 28 अगस्त 2024 (15:23 IST)
Jammu and Kashmir Assembly Elections: कश्मीर (Kashmir) में जमायते इस्लामी (Jamaat e Islami) ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार कर अन्य उम्मीदवारों के लिए चुनौती पैदा कर दी है। हालांकि नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने जमायते इस्लामी के इस कदम का स्वागत जरूर किया है और कहा है कि इससे मुकाबला रोचक होगा।
 
प्रतिबंधित जमायते इस्लामी जम्मू-कश्मीर के कई पूर्व सदस्यों ने मंगलवार को केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर नामांकन पत्र दाखिल किया था। जेल में बंद अलगाववादी कार्यकर्ता सरजन बरकती की बेटी सुगरा बरकती ने भी अपने पिता की ओर से नामांकन पत्र दाखिल किया। हालांकि जमात केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के कारण चुनाव में भाग नहीं ले सकती, लेकिन प्रतिबंध हटने पर लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव में भाग लेने में इसने रुचि दिखाई थी।
 
जमात ने 1987 के बाद किसी भी चुनाव में भाग नहीं लिया है और 1993 से 2003 तक अलगाववादी गठबंधन हुर्रियत कॉन्फ्रेंस का हिस्सा रही है जिसने चुनाव बहिष्कार की वकालत की थी। जमात के पूर्व सदस्य तलत मजीद ने पुलवामा निर्वाचन क्षेत्र से स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है।

 
राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का समय आ गया : इस अवसर पर मजीद ने पत्रकारों के साथ बात करते हुए कहा कि वर्ष 2008 से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य पर विचार करने के बाद उन्हें अतीत की कुछ 'कठोरता' से दूर रहने की जरूरत महसूस हुई। उन्होंने कहा कि वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए मुझे लगा कि राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेने का समय आ गया है। मैं 2014 से ही अपने विचार खुलकर व्यक्त करता रहा हूं और आज भी मैं उसी एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हूं।
 
मजीद ने कहा कि मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जमात और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे संगठनों की भूमिका है। उन्होंने कहा कि जब हम कश्मीर के हालात की बात करते हैं तो हम वैश्विक स्तर पर स्थिति को नजरअंदाज नहीं कर सकते। कश्मीरियों के तौर पर हमें वर्तमान में जीना चाहिए और (बेहतर) भविष्य की ओर देखना चाहिए।
 
जमात के एक अन्य पूर्व नेता सयार अहमद रेशी भी कुलगाम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। रेशी ने लोगों से अपने विवेक के अनुसार मतदान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति को आशीर्वाद देना या अपमानित करना अल्लाह पर निर्भर करता है लेकिन मैं लोगों से अपने विवेक के अनुसार मतदान करने की अपील करूंगा।

 
एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू करेंगे : वे कहते थे कि हम सुधारों के लिए एक ऐतिहासिक आंदोलन शुरू करेंगे। रेशी ने स्वीकार किया कि युवाओं को खेलों से जोड़कर हिंसा से दूर किया गया है, लेकिन उन्होंने कहा कि युवाओं को रोजगार की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि युवाओं को बल्ले दिए गए हैं, लेकिन इससे उनका पेट नहीं भरेगा। बेरोजगारी है और हत्याएं हो रही हैं। बुजुर्गों को 1,000 से 2,000 रुपए की मामूली वृद्धावस्था पेंशन के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है। हम सामाजिक न्याय के लिए काम करेंगे।
 
कश्मीर की आजादी की मांग करने वाले बरकती भी मैदान में : जम्मू-कश्मीर में 10 सालों के अरसे के बाद हो रहे विधानसभा चुनावों में जो हैरान कर देने वाले राजनीति नजारे हैं उनमें सरजन बरकती द्वारा नामांकन भरना भी है जो अभी तक कश्मीर की आजादी से ही कश्मीर समस्या का हल किए जाने पर जोर देते रहे थे।

 
याद रहे 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद भड़के उपद्रव के दौरान सुर्खियों में आए सरजन बरकती शोपियां जिले से चुनाव लड़ेंगे। उनकी बेटी सुगरा बरकती ने अपने पिता की ओर से नामांकन पत्र दाखिल किया, जो आतंकवाद के आरोप में जेल में हैं। जम्मू-कश्मीर में 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव हो रहे हैं।
 
यह सच है कि जम्मू-कश्मीर में प्रतिदिन विधानसभा चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है। इस बार चुनाव में अलगाववादी नेता भी मैदान में उतर रहे हैं। जेल में बंद कश्मीरी अलगावादी नेता और मौलवी सरजन अहमद वागे ने मंगलवार को शोपियां जिले के जैनपोरा विधानसभा क्षेत्र से नामांकन पत्र भर दिया। मौलवी सरजन अहमद वागे को सरजन बरकती के नाम से जाना जाता है।
 
बरकती की बेटी सुगरा ने उनका नामांकन पत्र भरा है। जब सुगरा नामांकन पत्र भरने के लिए जा रही थी तो उससे पहले उन्होंने अपने गांव रेबन के लोगों से पिता को समर्थन देने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि मेरे पिता को आपके समर्थन की बहुत जरूरत है। शायद बाबा यह देख भी रहे होंगे। उन्हें दुख होगा कि उनके मासूम बच्चे बिलकुल अकेले हैं। नारे लगाने के बाद में सुगरा रो पड़ीं।

 
जानकारी के लिए कुछ महीने पहले जेल में बंद अलगाववादी नेता इंजीनियर राशिद ने बारामुल्ला में लोकसभा चुनाव लड़ा था और यहां पर पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन को करारी शिकस्त दी थी और जीत हासिल की थी। इसी को देखते हुए बरकती का परिवार भी आस लगाए हुए है कि शायद लोगों की सहानुभूति उसके पक्ष में होगी। राशिद के बेटे अबरार की तरह ही बरकती की बेटी भी लोगों से उनकी रिहाई के लिए उनका समर्थन मांग रही है।
 
40 साल से ज्यादा की उम्र के बरकती 2016 में कुलगाम और शोपियां जिलों में हिज्बुल मुजाहिदीन कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद हुए विरोध प्रदर्शन में अहम शख्स थे। यह विरोध प्रदर्शन 3 महीने से भी ज्यादा टाइम तक चला था। पिछले साल उन्हें एक फंड जुटाने वाले कार्यक्रम से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया था। कुछ महीने के बाद उनकी पत्नी को भी इसी मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।
 
एनआईए ने अगस्त 2023 में बरकती को गिरफ्तार किया था। एजेंसी ने कहा कि यह मामला क्राउड फंडिंग के जरिये फंड जुटाने के अभियान में बरकती से जुड़ा हुआ है। इसकी वजह से करोड़ों रुपए जमा किए गए। बाद में इन पैसों का गलत तरीके से इस्तेमाल किया गया। घाटी में घर-घर फेमस होने से पहले बरकती उममत-ए-इस्लामी से जुड़े थे। यह काजी निसार के द्वारा बनाया गया एक धार्मिक संगठन है। अब इसे उनके बेटे काजिर यासिर चला रहे हैं।
 
नारे लगाने के अपने अनोखे अंदाज के लिए जाने जाने वाले बरकती 2016 के विरोध प्रदर्शन के बाद में फेमस हो गए और उन्हें फ्रीडम चाचा के तौर पर जाना जाने लगा। उनके नेतृत्व में कुलगाम और शोपियां में ज्यादातर रैलियां निकलीं। पुलिस ने कहा कि उनके खिलाफ 2016 में रैलियां को लेकर 30 केस दर्ज किए गए।
 
पुलिस ने कई मौकों पर फ्रीडम चाचा को गिरफ्तार करने की कोशिश की, लेकिन वह किसी तरह से बच निकला। उसे अक्टूबर 2016 में गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर पीएसए के तहत केस दर्ज किया गया। 2 साल बाद ही उसे छोड़ दिया गया, लेकिन बाद में फिर से उसे गिरफ्तार कर लिया गया और दोबारा पीएसए का केस दर्ज किया गया। फिर उसे नवंबर 2022 में रिहा कर दिया गया।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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