उथल-पुथल और हिंसा से नशे में डूबता कश्मीर, शू पॉलिश और सायरप से भी नशाखोरी

सुरेश एस डुग्गर
सोमवार, 8 मई 2023 (17:28 IST)
drug addiction: जम्मू। कश्मीर घाटी (Kashmir Valley) 3 दशकों से जारी सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल और हिंसा की कीमत अपनी दिमागी सेहत खोकर चुका रही है। कश्मीर में नशे के शिकार लोगों का आंकड़ा खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। पोस्त और भांग (poppy and cannabis) की खेती तो बढ़ ही रही है, नशीली दवाओं व हेरोइन (heroin) ने भी हजारों लोगों को गुलाम बना लिया है। इनमें छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा है।
 
 
नशा छुड़ाने वाले परामर्शकारों का अनुमान है कि कश्मीर में स्कूल और कॉलेज के 40 फीसदी छात्र ड्रग्स की चपेट में हैं। वादी में उभर रहे हालात पर अमेरिका की कार्नेल यूनिवर्सिटी से शोध कर रहे छात्र सैबा वर्मा कहते हैं कि अकेले श्रीनगर में नशे के आदी लोगों की संख्या कम से कम 60 से 90 हजार हो सकती है।
 
मगर समाज के साथ-साथ सरकार भी सामने दिखती इस चुनौती की तरफ से आंखें मूंदे है। आलम यह है कि समस्या से निबटने की बात तो दूर, समस्या कितनी गंभीर है, इस बारे में एक भी विस्तृत सर्वेक्षण तक भी नहीं किया गया है।
 
अधिकतर डॉक्टरों और मानसिक रोग विशेषज्ञों का कहना है कि 70 से 80 प्रतिशत लोग आसानी से मिलने वाली दवाओं मसलन अल्कोहल आधारित कफ सिरपों, दर्दनिवारक दवाओं, निशान मिटाने वाले केमिकल, नेल और शू पॉलिश से नशा करते हैं। बाकी लोग या तो शराब लेते हैं या घाटी में उगने वाली भांग और तम्बाकू के मिश्रण से काम चलाते हैं।
 
श्रीनगर में पुलिस कंट्रोल रूम में चलाए जा रहे एक नशामुक्ति केंद्र में काम करने वाले डॉ. खान कहते हैं कि हमारी एक पूरी पीढ़ी नशे की भेंट चढ़ने वाली है। नौजवानों में इतनी ज्यादा असुरक्षा काफी हद तक सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से पैदा हुई है। नशे के आदी अधिकतर लोग 18 से 35 साल के बीच के हैं।
 
उन्होंने आगे कहा कि अख्तर का ही उदाहरण लीजिए जिन्हें अक्सर सख्त घेराबंदी और सुरक्षा बलों के तलाशी अभियान और आतंकी हमलों से पैदा होने वाली तनावजनक परिस्थितियों से दो-चार होना पड़ता था। 2008 तक उनके सिर में लगातार दर्द रहने लगा था और इससे निजात पाने के लिए वे दर्दनिवारक दवाओं की मात्रा लगातार बढ़ा रहे थे।
 
अख्तर बताते हैं कि फिर एक दूसरे ड्राइवर ने सलाह दी कि मैं कुछ और स्ट्रांग चीज लूं। धीरे-धीरे वे दवा के ऐसे आदी हो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उन्होंने अपने घरवालों के साथ बुरा बर्ताव करना शुरू कर दिया।
 
अख्तर की कहानी यह भी बताती है कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग के पास नशामुक्ति और पुनर्वास के लिए कोई प्रभावी कार्यक्रम नहीं है। तनाव से मुक्ति के लिए अख्तर ने एक एनजीओ द्वारा चलाए जा रहे राहत नामक नशामुक्ति केंद्र की सहायता ली थी, पर जल्दी ही वे वहां से भाग आए, क्योंकि उन्हें पहले दिन ही कथित तौर पर कैदियों की तरह जंजीर में बांध दिया गया था।
 
Edited by: Ravindra Gupta

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