Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

कश्मीर में 34 सालों में 1000 राजनेता हुए आतंकियों के शिकार

हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही बनाया निशाना

हमें फॉलो करें कश्मीर में 34 सालों में 1000 राजनेता हुए आतंकियों के शिकार

सुरेश एस डुग्गर

, गुरुवार, 14 मार्च 2024 (15:48 IST)
Jammu Kasmir loksabha election : सुरक्षाबलों और प्रदेश सरकार के दावों के बावजूद इस सच्चाई से मुख नहीं मोड़ा जा सकता कि कश्मीर में फैले आतंकवाद में राजनीतिज्ञ आतंकियों के नर्म लक्ष्य रहे हैं। कश्मीर में होने वाले हर किस्म के चुनावों में आतंकियों ने राजनीतिज्ञों को ही निशाना बनाया है।
 
उन्होंने न ही पार्टी विशेष को लेकर कोई भेदभाव किया है और न ही उन राजनीतिज्ञों को ही बख्शा जिनकी पार्टी के नेता अलगाववादी सोच रखते हों।
 
माना कि अब कश्मीर में आतंकवाद के खात्मे का दावा किया जा रहा है पर यह इसी से स्पष्ट होता है कि पिछले 34 सालों के आतंकवाद के दौर के दौरान सरकारी तौर पर आतंकियों ने 1000 के करीब राजनीति से सीधे जुड़े हुए नेताओें को मौत के घाट उतारा है। इनमें ब्लाक स्तर से लेकर मंत्री और विधायक स्तर तक के नेता शामिल रहे हैं।
 
राज्य में विधानसभा चुनावों के दौरान हमेशा सबसे ज्यादा राजनीतिज्ञों को निशाना बनाया गया है। इसे आंकड़े भी स्पष्ट करते हैं। वर्ष 1996 के विधानसभा चुनावों में अगर आतंकी 75 से अधिक राजनीतिज्ञों और पार्टी कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतारने में कामयाब रहे थे तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव उससे अधिक खूनी साबित हुए थे जब 87 राजनीतिज्ञ मारे गए थे।
 
ऐसा भी नहीं था कि बीच के वर्षों में आतंकी खामोश रहे हों बल्कि जब भी उन्हें मौका मिलता वे लोगों में दहशत फैलाने के इरादों से राजनीतिज्ञों को जरूर निशाना बनाते रहे थे। अगर वर्ष 1989 से लेकर वर्ष 2005 तक के आंकड़ें लें तो 1989 और 1993 में आतंकियों ने किसी भी राजनीतिज्ञ की हत्या नहीं की और बाकी के वर्षों में यह आंकड़ा 8 से लेकर 87 तक गया है। इस प्रकार इन सालों में आतंकियों ने कुल 671 राजनीतिज्ञों को मौत के घाट उतार दिया।
 
अगर वर्ष 2008 का रिकार्ड देंखें तो आतंकियों ने 16 के करीब कोशिशें राजनीतिज्ञों को निशाना बनाने की अंजाम दी थीं। इनमें से वे कईयों में कामयाब भी रहे थे। चौंकाने वाली बात वर्ष 2008 की इन कोशिशों की यह थी कि यह लोकतांत्रिक सरकार के सत्ता में रहते हुए अंजाम दी गईं थी जिस कारण जनता में जो दहशत फैली वह अभी तक ’कायम’ है।
 
अब जबकि प्रदेश में लोकसभा चुनावों का बिगुल बजने जा रहा है और अधिकारियों को आशंका है कि आतंकी भी अपनी मांद से बाहर निकलेंगें। दरअसल उन्हें सीमा पार से दहशत मचाने के निर्देश दिए जा रहे हैं। वे अपनी कोशिशों में कामयाब न हों इसके लिए सुरक्षा व्यवस्थाओं की समीक्षा भी आरंभ हो चुकी है।


Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दुनिया का सबसे अमीर भिखारी, भीख के पैसों से बनाई करोड़ों की संपत्ति