बालकृष्ण की मनमोहक-लीलाएँ

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भगवान श्रीकृष्ण का ऐसा मनमोहक रूप था जिसे देखकर पूरा गोकुल ग्राम स्तब्ध रह जाता था। जब वे घुटने के बल चलते थे तो उनकी करधनी और पैजनियाँ बजने लगती थीं। कुछ और बड़ा होने पर व्रज के भीतर गौ और बछड़ों की पूँछ पकड़ने लगे। जब ये बछड़े भाग पड़ते थे और उनके साथ ये भी घसीटने लगते थे, इस लीला को देखकर ब्रज की गोपियाँ हँसने लगती थीं और यहाँ तक कि अपने गृहकार्य को भी भूल जाती थीं।

पशुओं, अग्नि, कुत्तों, जल, गिद्ध आदि पक्षियों तथा काँटों से उन्हें बचाकर रखने में ही यशोदा का पूर्ण समय व्यतीत हो जाता था। वे इतने चपल और नटखट थे कि उनकी देखरेख में ही यशोदा का पूरा समय व्यतीत हो जाता था फिर वे घर-गृहस्थी को किस प्रकार देखें।

कुछ और बड़ा होने पर कृष्ण समवयस्क ब्रजबालकों तथा बलराम के साथ अत्यधिक मधुर खेल खेलने लगे, जिसे देख गोपियाँ आनंदविह्वल हो जाती थीं। कृष्ण की चपलता को देख गोपियाँ वहाँ स्वयं आ जाती थीं और स्वयं अनुभूत उस कृष्ण की लीलानंद का यशोदा को अनुभव कराने के लिए खूब जोर-जोर से सुना-सुनाकर कहती थीं कि तुम्हारे कृष्ण ने हमारे बछड़ों को खोल दिया, उसने हमारा माखन, दूध भी चोरी से खा लिया। बंदरों के सदृश हमारी मटकी फोड़ दी।

यदि कोई वस्तु हमारे यहाँ नहीं मिलती है तो हमारे सोये बच्चों को रुलाकर वह भाग जाता है। यदि कोई चीज छींके के ऊपर रख दी जाए तो पीढ़े और ऊखल पर चढ़कर पाने के लिए प्रयत्न करता है। यदि वह इस पर भी दूध व मक्खन से भरी मटकी को प्राप्त नहीं कर पाता तो वह उसमें छेद कर डालता तब उसे पता चलता है कि कौन सी मटकी दही से, कौन सी मटकी मक्खन से भरी हुई है।

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जब अंधेरा घिर जाता है, तब तुम्हारा पुत्र नाना प्रकार की मणियों को पहने अपने अंग को ही दधि आदि ढूँढने का प्रकाशक बनाता है। अर्थात अपने शरीर को मणियों के प्रकाश के सहारे उन्हें ढूँढ निकालता है।

हे यशोदा! जब वह पकड़ा जाता है और उससे कुछ कहा जाता है तो वह बड़ी प्रगल्भता से यही कहता है कि चोर तो तू है घर का मालिक मैं हूँ। इस तरह तुम्हारा पुत्र अत्यधिक धृष्टता करता है। यदि डाँट-डपट की जाए तो लीपे-पुते स्थान को मूत्रादि करके बिगाड़ देता है। चोरी करने के जितने भी तरीके हैं, उन सब का यह प्रयोग करता है। यदि तुम्हारे पास इसकी कुछ शिकायतें की जाएँ तो यह ऐसा मुँह बना लेता है मानों कुछ जानता ही नहीं।

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