भगवान श्रीकृष्‍ण का धर्म पथ

विषम परिस्थितियों में न त्यागें धर्म

Webdunia
- अनिल त्रिवेदी
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हमें अपने धर्म के पथ से कभी भी विचलित नहीं होना चाहिए। चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति ही क्यों न आ जाए। जो अपने धर्म के पथ पर चलता है सफलता उसके कदम चूमती है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म के पथ पर चलने की ओर मार्गदर्शन दिया।

भीषण भव-रण मध्य एक तृण-मात्र हूं मैं अति साधारण।
लीजे अपनी चरण-शरण, हे अधम-उधारण बिनु कारण॥

माया-आकर्षण से कीजे, रक्षण कृष्ण तरण-तारण।
क्षम-मम-दूषण, त्रिभुवन-भूषण, दीनबंधु, प्रभु दुख-हारण॥

होय निवारण, मोह-आवरण, ज्ञान-जागरण हो तत्क्षण।
करूं स्मरण, दर्शन प्रतिक्षण, कण-कण बन जाए दर्पण॥

दैन्य हरण कर प्रेम संचरण, कर दूं मैं मैं-पन अर्पण।
पाप क्षरण कर, जन्म-मरण हर, पूर्ण करो प्रभु अपना प्रण॥

टेर श्रवण कर, मुझे ग्रहण कर, नर बन जाए नारायण।
परम विलक्षण और असाधारण गति पा जाए यह तृण॥
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