कृष्णयज्ञ मंत्रन्यास विधि

पुरुषसूक्त न्यास

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विनियोग :
सहस्रशीर्षेत्यादिषोडशर्चस्य पुरुषसूक्तस्य नारायण ऋषिः आद्यानां पश्चदशानामनुष्टुप्‌छन्दः यज्ञेन यज्ञमित्यस्य त्रिष्टुप्‌छन्दः जगद्बीजं नारायणपुरुषो देवता, न्यासे हवने च विनियोगः।

ॐ सहस्रशीर्षा. वामकरे।
ॐ पुरुष ऽएव. दक्षिणकरे।
ॐ एतावानस्य. वामपादे।
ॐ त्रिपादूर्ध्व. दक्षिणपादे।
ॐ ततो विराडजायत. वामजानौ।
ॐ तस्माद्यज्ञात्‌ सर्वहुतः. दक्षिणजानौ।
ॐ तस्माद्यज्ञात्‌ सर्वहुतऽऋचः. वामकट्याम्‌।
ॐ तस्मादश्वा. दक्षिणकट्याम।
ॐ तं यज्ञं बर्हिषि. नाभौ।
ॐ यत्पुरुषं व्यदधुः. हृदये।
ॐ ब्राह्मणोऽस्य. वामबाहौ ।
ॐ चन्द्रमा मनसः. दक्षिणबाहौ।
ॐ नाभ्या ऽआसीदन्त. कण्ठे।
ॐ यत्पुरुषेण हविषा. मुखे।
ॐ सप्तास्यासन्‌. अक्ष्णोः।
ॐ यज्ञेन यज्ञम्‌ मूर्ध्नि।

दोबारा :

ब्राह्मणोऽस्य. हृदयाय नमः।
चन्द्रमा मनसः. शिरसे स्वाहा।
नाभ्या ऽआसीदन्त. कवचाय हुम्‌।
यत्पुरुषेण हविषा. नेत्रत्रयाय वौषट्।
सप्तास्यासन्‌. शिखायै वषट्।
यज्ञेन यज्ञम्‌. अस्त्राय फट्।

ध्यान :
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शिखि-मुकुट-विशेषं नील-पद्मांगदेशं
विधिमुख-कृतकेशं कौस्तुभापीत-वेशम्‌।
मधुर-रव-कलेशं शं भजे भ्रातृशेषं
व्रजजन-वनितेशं माधवं राधिकेशम्‌॥

॥ कृष्णयागमंत्रन्यासविधिः संपूर्णम्‌ ॥
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