पुत्र प्राप्ति हेतु करें कृष्ण यज्ञ

कृष्णयज्ञ अर्थात वासुदेव यज्ञ (पुत्र प्राप्ति हेतु)

Webdunia
ND

वासुदेव यज्ञ अर्थात कृष्ण यज्ञ प्रमुख रूप से पुत्र प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। मनु ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यह यज्ञ किया था, जिससे उन्हें दस पुत्र हुए। ऐसा उल्लेख भागवत में आया है। अतः इस यज्ञ का विधान अतिप्राचीन है। पुत्र प्राप्ति हेतु वासुदेव यज्ञ निम्न प्रकार से करना चाहिए।

शास्त्रों के मतानुसार कृष्णयज्ञ को सविधि सांगोपांग विधि से सम्पन्न करने के लिए आचार्य का प्रथम कर्तव्य है कि वह यज्ञकर्ता से सर्वप्रथम उपवास और प्रायश्चित कर्म कराए।

इसके पश्चात ही यज्ञकर्ता पंचांग और आचार्यादि का सविधिवरण करे।

इसके बाद यज्ञकर्ता अपनी धर्मपत्नी सहित बंधु-बांधव, इष्ट-मित्रों के साथ सूर्यार्घ्य देकर शंख ध्वनि के साथ यज्ञमंडप के पश्चिम द्वार से ही प्रवेश करे।

तत्पश्चात्‌ आचार्य दिग्‌रक्षण, मण्डपप्रोक्षण, वास्तुपूजन, मंडपपूजन, न्यासपूर्वक प्रधानपूजन, योगिनीपूजन, क्षेत्रपालपूजन, अरणिमंथन, पंचभूसंस्कार सहित अग्निस्थापन, कुशकण्डिका, ग्रहपूजन, आधार-आज्यभागत्याग, ग्रह हवन, न्यास तथा प्रधान देवता का पुरुषसूक्त के मंत्रों से हवन कराएँ।

मण्डप पूजन तथा प्रधान देवता की आहुति पूर्णाहुतिपर्यंत प्रत्येक दिन करें।

प्रधानाहुति पूर्ण होने के बाद गोदुग्ध से निर्मित खीर द्वारा पुरुष सूक्त से और कृष्णसहस्रनामावली से आचार्य हवनकर्म सम्पन्न कराएँ। इसके उपरान्त ही आवाहित देवताओं का वैदिक मंत्र से या उनके नाम मंत्र से हवन कराएँ। उपरान्त अग्निपूजन स्विष्टकृत, नवाहुति, दशदिक्‌पालादिबलि, पूर्णाहुति तथा वसोर्धाराकर्म सम्पन्न कराएँ।

इसके पश्चात ही त्र्यायुष तथा पूर्ण पात्र दान कर्म यथोचित्‌ रूप से कराएँ। उपरोक्त कर्मों की समाप्ति के पश्चात शैयादान, प्रधानपीठ तथा मंडपदान का संकल्प कर्ता से कराएँ। इन कर्मों को करने के पश्चात आचार्य कर्ता से भूयसी दक्षिणा तथा कर्मांगोदानादिकर्म संकल्पपूर्वक कराएँ। शास्त्रोक्त विधि से अभिषेक, अवभृथस्नान करके कर्ता कृष्णयज्ञ में उपस्थित सभी ब्राह्मणों को दक्षिणा प्रदान करें।

ND
उपरोक्त वैदिक कर्मों की समाप्ति के पश्चात देवविसर्जन करके कर्ता अपने इष्ट-मित्रों, संबंधियों एवं परिवार के लोगों के साथ ब्राह्मण भोजन कराए ँ।

कृष्णयाग- भगवान विष्णु के अवतार, सोलह कलाओं से पूर्ण भगवान श्रीकृष्ण का यह याग पाँच, सात, आठ या नौ दिन में सम्पन्न होता है। कृष्णयाग में पुरुषसूक्त के सोलह मंत्रों से व कृष्ण सहस्रनामावली द्वारा हवन होता है। विष्णुयाग के सदृश इसमें भी सोलह हजार आहुति होती है। इस यज्ञ में हवन सामग्री ग्यारह मन कही गई है। इस यज्ञ को सम्पन्न कराने के लिए सोलह या इक्कीस विद्वानों का आचार्य सहित वरण होता है।

कृष्णयाग का मुहूर्त- चैत्र में अथवा फाल्गुन में या ज्येष्ठ मास में अथवा वैशाख मास में या फिर माघ मास में कृष्णयाग किया जा सकता है। इन मासों में किया गया कृष्णयाग शुभकारी होता है।

शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, दशमी, त्रयोदशी तथा द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का यह याग त्रैवर्णिक कर सकते हैं।

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

तिरुपति बालाजी के प्रसाद लड्डू की कथा और इतिहास जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे, खुद माता लक्ष्मी ने बनाया था लड्डू

Sukra Gochar : शुक्र ने बनाया केंद्र त्रिकोण राजयोग, 6 राशियों को नौकरी में मिलेगा प्रमोशन

कन्या राशि में बुध बनाएंगे भद्र महापुरुष राजयोग, 4 राशियों का होगा भाग्योदय

Vastu Tips: घर में किचन किस दिशा में होना चाहिए और किस दिशा में नहीं होना चाहिए?

Ketu Gochar : पापी ग्रह केतु के नक्षत्र में होगा गुरु का प्रवेश, 3 राशियों की चमकने वाली है किस्‍मत

सभी देखें

धर्म संसार

23 सितंबर 2024 : आपका जन्मदिन

23 सितंबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

साप्ताहिक राशिफल 2024: इस सप्ताह किन राशियों के सितारे रहेंगे बुलंदियों पर, जानें 12 राशियां Weekly Horoscope

Muhurat This Week: 7 दिन के सर्वश्रेष्‍ठ शुभ मुहूर्त, जानें 23 से 29 सितंबर तक

Aaj Ka Rashifal: 22 सितंबर का दिन‍ किसके लिए लेकर आया है शुभ समाचार, पढ़ें अपनी राशि