आया पर्व करवा चौथ का...

राजश्री कासलीवाल
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करवा चौथ आते ही हर महिला के मन में एक अजीब-सी हलचल होने लगती है। उनका मन साज-श्रंगार करने के लिए लालायित होने लगता है। महिलाएँ इस त्योहार की तैयारी महीनों पहले से ही करने लगती हैं। परंपरा, फैशन और आधुनिकता के अनुरूप सजने-सँवरने के लिए महिलाएँ, कुँवारी कन्याएँ तरह-तरह के साजो-सामान को बाजार से समेटकर ले आती हैं और इस आने वाले पर्व का इंतजार करती हैं।

इस दिन महिलाएँ विशेष रूप से श्रंगार करती हैं। फैशन के इस दौर में भी महिलाएँ इस पर्व पर पारंपरिक रूप से ही तैयार होती हैं। कुछेक महिलाएँ इस दिन विवाह के समय दी गई चुँदड़ी भी ओढ़ती हैं।

जिस घर में नवविवाहिता बहू होती है उसके पहले करवा चौथ पर कुछ परिवारों में मायके से ससुराल में उपहारस्वरूप वस्त्र और श्रंगार का सामान भिजवाया जाता है, जिसे पहनकर ही नवविवाहिता यह पूजा करती है। नवविवाहिताओं को बस इंतजार रहता है शरमाकर बादलों के घूँघट में छिपे चंद्रमा का सुंदर मुखड़ा देखने का। उन्हें न भूख, न प्यास का अहसास होता है। उनके मन में तो बस करवा चौथ की उमंग होती है। करवा चौथ के दिन छोटी बहू, परिवार की बड़ी बहू या फिर सास को करवा और मिष्ठान्न प्रदान कर अखंड सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद लेती है।

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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला त्योहार करवा चौथ एक ऐसा पावन दिन है जब पति की आयु के लिए की गई प्रार्थना प्रभु स्वीकार करते हैं और यही विवाहिता के लिए बड़ा वरदान है। चौथ के एक दिन पहले ही महिलाएँ मेहँदी लगवाकर अपनी सजी हथेली से पूजन करती हैं।

वर्ष में एक बार आने वाले इस दिन महिलाएँ पति की लंबी उम्र और सलामती के लिए चौथमाता से मुराद माँगकर इस पर्व को सार्थक करती हैं। करवा चौथ के दिन लाल रंग के परिधान पहनने का अपना अलग ही महत्व है, क्योंकि लाल रंग शुभ व सुहाग का प्रतीक माना जाता है अतः इस पर्व पर सामान्यतः इसी रंग के परिधान पहने जाते हैं।

समय में आए बदलाव के अनुसार अब पुरुष भी अपनी पत्नी के लिए करवा चौथ का व्रत रखते हैं और अपनी पत्नी की भावनाओं, उनकी आकांक्षाओं का ख्याल रखते हुए दोनों एक-दूजे के साथ-साथ, एक-दूजे के हाथ से व्रत का समापन करते हैं।

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