चंद्रमा के उदय के बाद चंद्रमा का प्रतिबिंब एक जल की थाली में देखा जाता हैं।
कई स्थानों पर छलनी के माध्यम से भी चंद्रदर्शन किए जाते हैं। चंद्रमा की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। व्रत की कथाएं सुनाई जाती हैं, पति के चरण स्पर्श किए जाते हैं।
करवे में रखे मिठाई या पताशे बांटे जाते हैं। इसके बाद व्रत समाप्त माना जाता है और सभी व्रत करने वाली स्त्रियां अन्न-जल ग्रहण करती हैं।