करवा चौथ व्रतकथा 4

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एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया- भाई! अभी चाँद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूँगी।

बहन की बात सुनकर भाइयों ने नगर के बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी लेकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा- बहन! चाँद निकल आया है। अर्घ्‍य देकर भोजन जीम लो। यह सुन उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम भी चंद्रमा को अर्घ्य दे लो, परंतु वे इस कांड को जानती थीं, उन्होंने कहा बहनजी! अभी चाँद नहीं निकला, तेरे भाई तेरे साथ धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।

भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को ही अर्घ्‍य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेशजी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति बीमार हो गया और जो कुछ घर में था, उसकी बीमारी में लग गया।

जब उसे अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया। गणेशजी की प्रार्थना करते हुए विधि-विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरंभ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया।

इस प्रकार उसके श्रद्धा-भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान देकर उसे आरोग्य करने के पश्चात्‌ धन-संपत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्यागकर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे, वे सब प्रकार से सुखी होते हुए क्लेशों से मुक्त हो जाएँगे।

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