करवा चौथ : प्यार-विश्‍वास का त्योहार

रिश्‍तों का ताल-मेल बढ़ाता करवा चौथ

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जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतीय पत्नी की सारी दुनिया, उसके पति से शुरू होती है उन्हीं पर समाप्त होती है। शायद चांद को इसीलिए इसका प्रतीक माना गया होगा क्योंकि चांद भी धरती के कक्षा में जिस तन्मयता, प्यार समर्पण से वो धरती के इर्द-गिर्द रहता है, हमारी भारतीय औरतें उसी प्रतीक को अपना लेती हैं।

वैसे भी हमारा भारत, अपने परंपराओं, प्रकृति प्रेम, आध्यात्मिकता, वृहद संस्कृति, उच्च विचार और धार्मिक पुरजोरता के आधार पर विश्व में अपने अलग पहचान बनाने में सक्षम है। इसके उदाहरण स्वरूप करवा चौथ से अच्छा कौन-सा व्रत हो सकता है जो कि परंपरा, अध्यात्म, प्यार, समर्पण, प्रकृति प्रेम और जीवन सबको एक साथ, एक सूत्र में पिरोकर, सदियों से चलता आ रहा है।

यह पावन व्रत किसी परंपरा के आधार पर न होकर, युगल के अपने ताल-मेल पर हो तो बेहतर है। जहां पत्नी इस कामना के साथ दिन भर निर्जला रहकर रात को चांद देखकर अपने चांद के शाश्वत जीवन की कामना करती है, वह कामना सच्चे दिल से शाश्वत प्रेम से परिपूर्ण हो, न कि सिर्फ इसलिए हो की ऐसी परंपरा है।

यह तभी संभव होगा जब युगल का व्यक्तिगत जीवन परंपरा के आधार पर न जाकर, प्रेम के आधार पर हो, शादी सिर्फ एक बंधन न हो, बल्कि शादी नवजीवन का खुला आकाश हो, जिसमें प्यार का ऐसा वृक्ष लहराए जिसकी जड़ों में परंपरा का दीमक नहीं प्यार का अमृत बरसता हो, जिसकी तनाओं में बंधन का नहीं प्रेम का आधार हो। जब ऐसा युगल एक दूसरे के लिए करवा चौथ का व्रत करके चांद से अपने प्यार के शाश्वत होने का आशीर्वचन माँगेगा तो चांद ही क्या, पूरी कायनात से उनको वो आशीर्वचन मिलेगा।

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करवा चौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्वास का कि हम साथ-साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि हमारा साथ न छूटे। आज हम कितना भी आधुनिक हो जाएं, पर क्या ये आधुनिकता हमारे बीच के प्यार को मिटाने के लिए होनी चाहिए? रिश्तों में अपनत्व का मिट जाना, फालतू का अपने संस्कृति पर अंगुली उठाते रहना। हम यह भूल जाते हैं कि परंपरा वक्त की मांग के अनुसार बनी होती है, वक्त के साथ परंपरा में संशोधन किया जाना चाहिए पर उसको तिरस्कृत नहीं करना चाहिए, आखिर यही परम्परा हमारे पूर्वजों की धरोहर है।

आखिर हम आधुनिकता का लबादा ओढ़कर कब तक अपने धरोहर को, अपने ही प्यार के वृक्ष को काटते रहने पर तुले रहेंगे। करवा चौथ जबरन नहीं प्यार से, विश्वास से मनाइए, इस यकीन से मनाइए कि आपका प्यार अमिट और शाश्वत रहे। किसी ने सच ही कहा है- करवा चौथ है विश्वास का त्योहार...।

ओ चांद तुझे पता है क्या?
तू कितना अनमोल है

देखने को धरती की सारी पत्नियां
बेसब्र फलक को ताकेंगी

कब आएगा, तू कब छाएगा?
देगा उनको आशीर्वचन
होगा उनका प्रेम अमर।

- डॉ. गरिमा तिवारी

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