करवा चौथ में नवीनता का समावेश

करवा चौथ का बदलता स्वरूप

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समय और समाज में आ रहे बदलावों के साथ-साथ हमारे तीज त्योहार भी बदल रहे हैं। पति की लंबी आयु के लिए किया जाने वाला व्रत करवा चौथ अब लोक परंपरा ही नहीं रह गया है, बल्कि इसमें आज की युवा पीढ़ी ने नए रंग भरे हैं। आज की कामकाजी महिला करवा चौथ का व्रत तो रखती है, साथ ही उनके 'वे' भी व्रत रखने लगे हैं।

दिनभर उपवास के बाद शाम को अठराह-बीस साल की युवती से लेकर पचहत्तर साल की महिला नई दुल्हन की तरह सजती-संवरती है। करवा चौथ के दिन एक खूबसूरत रिश्ता साल-दर-साल मजबूत होता है।

करवा चौथ पर सजने के लिए पंद्रह दिन पहले से ही बुकिंग होनी शुरू हो जाती है। ब्यूटी पार्लर अलग-अलग किस्म के पैकेज की घोषणा करते हैं। महिलाएं न सिर्फ उस दिन श्रृंगार कराने आती हैं, बल्कि प्री-मेकअप भी कराया जा रहा है। करवा चौथ पर मेहंदी का बाजार लाखों के पार बैठता है। सुबह से लेकर शाम तक महिलाएं अपने हाथों में मेहंदी लगवाने के लिए कतार में खड़ी रहती हैं।

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पति का भी व्रत रखना परंपरा का विस्तार है। इस पर्व को अब सफल और खुशहाल दाम्पत्य की कामना के लिए किया जा रहा है। यह चलन और पक्का होता जा रहा है। इसीलिए करवा चौथ अब केवल लोक-परंपरा नहीं रह गई है। पौराणिकता के साथ-साथ इसमें आधुनिकता का प्रवेश हो चुका है और अब यह त्योहार भावनाओं पर केंद्रित हो गया है।

हमारे समाज की यही खासियत है कि हम परंपराओं में नवीनता का समावेश लगातार करते रहते हैं। कभी करवा चौथ पत्नी के, पति के प्रति समर्पण का प्रतीक हुआ करता था, लेकिन आज यह पति-पत्नी के बीच के सामंजस्य और रिश्ते की ऊष्मा से दमक और महक रहा है।

आधुनिक होते दौर में हमने अपनी परंपरा तो नहीं छोड़ी है, अब इसमें ज्यादा संवेदनशीलता, समर्पण और प्रेम की अभिव्यक्ति दिखाई देती है। दोनों के बीच अहसास का घेरा मजबूत होता है, जो रिश्तों को सुरक्षित करता है।

कॉरपोरेट जेनरेशन की महिलाएं भी अपने सुहाग के प्रति उतनी ही प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनके सुहाग यानी पतिदेव की भावनाओं में जबरदस्त परिवर्तन आया है। महानगर में कई युगल ऐसे हैं, जहां पति भी अपनी पत्नी के साथ करवा चौथ का व्रत करते हैं और उसके बाद रात को किसी रेस्तरां में रोमांटिक डिनर के लिए जाते हैं।

सुहाग की कुशल कामना का पर्व करवा चौथ तो आज भी कायम है, लेकिन बदले स्वरूप के साथ। यानी एक वर्ग ऐसा भी है, जो करवा चौथ पर करवा, बायना, परंपरागत पकवान और सात भाइयों की बहन की कहानी से दूर होते हुए भी उसे बस फीलिंग्स के साथ मना रहा है।

युवा वर्ग का मूल तत्व प्रेम और समर्पण तो वैसे ही मौजूद है पर कथा सुनने, निर्जल रहने, चांद को अर्घ्य देने और पति द्वारा पानी पिलाए जाने जैसी रस्में निभा पाना संभव नहीं है, क्योंकि नौकरी का शेड्यूल यह सब करने का मौका नहीं देता। इसीलिए रेस्तरां में खाने का चलन बढ़ा है।

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