जब मुझे ऑस्कर मिला

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सबसे पहले तो यह कि मेरा नाम नयोनिका शर्मा है। प्यार से सब मुझे चुनचुन कहते हैं। आज मैं आपको यह बताने जा रही हूँ कि मुझे ऑस्कर मिला? ऑस्कर मेरे लिए अब तक की सबसे अच्छी याद है। इसकी शुरुआत हुई मम्मी की कहानियों से। उन्होंने मुझे बताया ‍कि उनके घर में हमेशा डॉगी रहा है। एक नहीं दो-चार तक रहे हैं। मम्मी को उनके बचपन से ही पेट्‍स पसंद रहे हैं। उन्होंने तो डॉगी के साथ-साथ बिल्लियाँ और कछुए भी अपने घर में पाले हैं।

यह मुझे मम्मी ने ही बताया। इसी से मुझे लगा कि मेरा भी एक दोस्त होना चाहिए। लेकिन पापा की नौकरी ऐसी थी ‍कि उसमें एक शहर से दूसरे शहर जाना लगा ही रहता है। जब मैं जयपुर में रहती थी तब एक डॉगी को लाने के बारे में सोचा भी था पर पापा ने यह कहकर मना कर दिया कि अभी उसकी देखभाल कौन करेगा। लेकिन मैंने पापा का पीछा नहीं छोड़ा। मम्मी मेरे साथ थीं। जब हम इंदौर आए तो मेरी इच्छा पूरी हुई। पापा ने एक दिन कहा कि वे जल्दी ही एक डॉगी लाने वाले हैं। उनके किसी दोस्त के यहाँ से।

पापा ने ही बताया कि यह लेबराडोर नस्ल का डॉगी है। जिस दिन यह घोषणा हुई उसी दिन से मुझे अपने प्यारे दोस्त के नाम ने उलझन में डाल दिया। मैं सोचने लगी कि उसे आखिर नाम क्या दिया जाए...?

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इसी बीच सोचने में आया कि जयपुर में पापा के एक दोस्त थे, उनके यहाँ भी डॉगी था जिसका नाम था ऑस्कर। बस फिर क्या था मैंने तय कर लिया कि अपने डॉगी को भी मैं ऑस्कर कहकर बुलाऊँगी। फिर पापी इसी साल 25 मार्च को डॉगी ले आए और मुझे ऑस्कर मिल गया। वो एक नन्हा सा पपी था। मैंने उसका खूब स्वागत किया। शुरुआत में तो उसने हमें थोड़ा तंग भी किया। हो सकता है उसे अपनी मम्मा की याद आती हो पर फिर वो मेरे साथ खेलने लगा। ऑस्कर के साथ कुछ ही दिनों में मेरी जोड़ बहुत अच्छी जम गई। जब मैं स्कूल जाती तो वो मुझे गेट तक छोड़ने आता, वापस आती तो मुझे खूब प्यार करता। पापा रात को जब नौकरी से आते तो उनका भी स्वागत करता। जब भी मम्मी मुझे डाँटती तो ऑस्कर तुरंत मेरे बगल में आकर मुझे पुचकारता।

मैं रोती तो वह मुझे चुप कराता। हम दोनों मम्मी की गोदी में भी एक साथ बैठते। जब मैं खाना खाने बैठती तो उसे पहले खाना चाहिए होता, जब मैं पलंग पर सोती तो मेरे ऊपर अपने सिर को टिकाकर सोता। नन्हा ऑस्कर बहुत समझदार था। वो बहुत तेजी से बड़ा हुआ। जब भी मैं कभी पापा-मम्मी के साथ बाहर जाती तो वह खूब शोर करता। बहुत चिल्लाता। उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था कि हम उसे अकेला छोड़कर कहीं जाएँ। हम उसे हमेशा अपने साथ ही रखते लेकिन उसे बाहर ले जाना संभव नहीं था। उसका वजन काफी बढ़ गया था। अब वो मुझसे भी भारी हो गया था।

एक दिन पापा ने कहा कि ऑस्कर को वो मम्मी के घर ग्वालियर भेज देंगे क्योंकि वहाँ ऑस्कर की बहन डोना है। वो दोनों मिलकर साथ रह लेंगे और हमें ऑस्कर को बाहर जाते समय घर पर अकेला छोड़कर भी नहीं जाना होगा। यह सुनकर मैं बहुत उदास हो गई लेकिन पापा ने कहा कि ऑस्कर के लिए यह बहुत जरूरी है। मैं सिर्फ अपने मम्मी-पापा के साथ ही इंदौर में रहती हूँ।

हमारा बाकी परिवार ग्वालियर में है। वहाँ ऑस्कर की देखरेख करने के लिए काफी लोग हैं। बड़ा घर है और ऑस्कर की बहन डोना भी है जिसे पापा ऑस्कर के साथ ही लाए थे। डोना का रंग क्रीम जैसा है। ऑस्कर हमारे घर से काफी बड़ा होकर गया, मुझसे भी बड़ा। तो ऑस्कर ग्वालियर चला गया, लेकिन उसने मुझसे बहुत स्नेह किया।

अ ब मै ं ऑस्कर से मिलने जब भी जाती हूँ तो वो मुझसे छोटा होते हुए भी बड़ों की तरह बर्ताव करता है। वो मुझे बहुत प्यार करता है और हर बार लगता है कि वो मुझसे बहुत सी बातें करना चाहता है। पापा ने मुझसे वादा किया है कि वो ऐसा इंतजाम कर देंगे जब मेरे डॉगी की देखभाल करन े क े लिए हमारे घर में कोई न कोई हमेशा रहेगा, तब एक बार फिर से मेरा ऑस्कर वापस आ जाएगा। मैं उस दिन का इंतजार क र रह ी हूँ ।

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