परीक्षा तो आती ही रहेगी

संपादक की चिट्ठी

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परीक्षा सिर पर आ गई है। अब कोई नसीहतें काम न करेंगी। नियमित पढ़ाई करो कहना आसान है लेकिन बच्चे ही जानते हैं कि आसपास की दुनिया इतनी मजेदार है कि पुस्तकों में सिर खपाना कितना कठिन काम होता है।

सच देखा जाए तो सारा ज्ञान दुनियाभर में बिखरा होता है। पुस्तकें तो एक तरह से उनकी कुंजी होती हैं। पुस्तक में छपा जंगल का पाठ उतना सब नहीं सिखा पाएगा, जितना जंगल में बिताया हुआ समय।

किताबी पाठ के अंत में पाँच प्रश्न होंगे लेकिन जंगल घूमने के बाद तुम्हारे मन में पच्चीस प्रश्न उठेंगे। इनके उत्तर तुम्हें वन या पर्यावरण के अलावा दुनियादारी की भी समझ देंगे।
  परीक्षा सिर पर आ गई है। अब कोई नसीहतें काम न करेंगी। नियमित पढ़ाई करो कहना आसान है लेकिन बच्चे ही जानते हैं कि आसपास की दुनिया इतनी मजेदार है कि पुस्तकों में सिर खपाना कितना कठिन काम होता है।      


बोर्ड की परीक्षा तो साल में एक बार आती है, किंतु असली जीवन में रोज ही परीक्षा होती है जिसके प्रश्नों का उत्तर पुस्तक के बाहर के ज्ञान से देना होता है। चलो जाने भी दो। अभी किताबी प्रश्नों के उत्तर देकर परीक्षा पास करनी है। अब रटने का समय गया। जो भी पढ़ा है उस पर मनपूर्वक सोचकर शांति से पर्चा हल करो।

हमारी शुभकामनाएँ तुम्हारे साथ हैं।

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