माँ का कहना हमेशा मानना

मेरा बचपन

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दोस्तो,
आप मेरी फिल्में देखते हैं ना। तो फिर बताइए आपको मेरी सबसे अच्छी फिल्म कौन सी लगी? नहीं समझ आ रहा तो छोड़िए। मुझे भी खुद ही नहीं पता है कि मेरी सबसे अच्छी फिल्म कौ न- सी है। होना भी यही चाहिए हमें अपने पिछले काम से हर बार बेहतर करने की कोशिश करनी चाहिए। मैं भी हर फिल्म में यही करता हूँ।

वैसे फिल्म एक्टर बनने के लिए ज्यादा पढ़ना नहीं पड़ता है, बस अपने आसपास के लोगों को देखने की नजर तेज होना चाहिए। मैं भी अपने बचपन में अपने आसपास के लोगों की मिमिक्री किया करता था। और आज भी मैं मिमिक्री कर रहा हूँ। बचपन में भी दूसरों की नकल उतारने से खुश होकर लोग पैसे देते थे और आज भी दे रहे हैं। एक और बात मैं बचपन में रामलीला में भाग लिया करता था।

इसमें मैं एक बंदर का रोल करता था। ऐसे ही मैं हीरोइन मुमताज की नकल बहुत अच्छे से उतारता था और जब मैं यह करता तो सभी मुझसे बड़े प्रभावित होते और मैं बड़ा खुश होता। मुझे याद है जब मैं छोटा था तो हमारे यहाँ एक आंटी आती थी जो बहुत गहरी गुलाबी लिपस्टिक लगाती थी। एक बार मैंने उनकी लिपिस्टिक की तारीफ की थी तो वे बहुत खुश हुईं। उस दिन मुझे लगा था कि हमेशा दूसरों की अच्छाई देखना चाहिए। लोगों की बुराइयाँ देखने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए।

हम लोग दिल्ली में रहते थे। मैं दिल्ली के सेंट कोलंबिया स्कूल में पढ़ता था और पढ़ने में शुरू से ही बड़ा होशियार था। मेरे पिता ताज खान इंजीनियर थे और माँ भी विलायत में पढ़ी थीं। बहन शहनाज भी पढ़-लिखकर अच्छा इंसान बनने के बारे में कहती थी, पर मुझे पढ़ने सेज्यादा मजेदार काम एक्टिंग करना लगता था।

मैंने बचपन में ही यह तय कर लिया था कि मुझे तो एक्टर ही बनना है और जब मैंने अम्मी और बाबा को यह बताया तो उन्होंने कहा कि हाँ, हॉँ, जरूर बनना। पर पहले अच्छे से पढ़ो ताकि सभी तुम्हारी बात सुनें। मैं जब पढ़ता था तोमेरी हिन्दी अच्छी नहीं थी। हिन्दी में मुझे 0 नंबर मिलते थे। माँ ने जब यह देखा तो उसने मुझसे कहा कि अगर मैं 10 में से 10 नंबर ले आऊँगा तो वह मुझे फिल्म दिखाने ले जाएँगी और इसके बाद मैं 10 में से 10 नंबर लाने लगा। दोस्तो, यह तो सब अच्छी-अच्छी बात हुई।

पर कुछ बातें ऐसी भी है जो अच्छी नहीं थी पर उन्होंने मुझे बहुत सिखाया। वो यह थीं कि जब मेरे पिताजी बीमार हुए तो उनके इलाज के लिए घर का सारा पैसा लग गया। माँ ने ऐसे में दिन-रात काम किया। उसने हमें भी संभाला और घर चलाने के लिए पैसा भी कमाया। यह हमारे लिए अच्छे दिन नहीं थे। बाबा को कैंसर था और उनके एक इंजेक्शन के लिए 5 हजार रु. तक खर्च करना होते थे।

बाबा के गुजर जाने के बाद तो माँ ने ही हमें अच्छे से पढ़ाया और हमेशा अच्छा इंसान बनने की सलाह दी। मैं अपनी माँ की बात हमेशा मानता था। मैंने कहीं पढ़ाथा कि माँ के रूप में अल्लाह ही हमारे साथ रहता है। माँ की बात मानने का ही नतीजा है कि आज मैं अच्छा इंसान बन पाया हूँ। दोस्तो, आप अपनी माँ की बात हमेशा सुनना।

उसकी मदद करना। उसकी बातों को ध्यान से सुनना और उसे खुश रखने की कोशिश करना। और हाँ,ऐसा कोई काम मत करना जिससे उसे दुःख पहुँचे। माँ को खुश रखोगे तो मेरी तरह खुश रहोगे- हमेशा। 2 नवंबर को मेरा जन्मदिन है और अगर आप मुझे जन्मदिन विश करेंगे तो अच्छा लगेगा। चिट्ठी स्पेक्ट्रम के पते पर भेजना। मुझे मिल जाएगी।

तुम्हारा
शाहरुख खान

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