फनी कविता : बात नहीं यह ठीक पिताजी

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
बुधवार, 20 अगस्त 2014 (11:22 IST)
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पापाजी यह क्या करते हो,
मम्मीजी से क्यों लड़ते हो।

मम्मी रोज सुबह उठ जातीं।
साफ-सफाई में लग जातीं।
चाय-नाश्ता रोज बनातीं।
बड़े प्रेम से हमें खिलातीं।
आप पिताजी क्या करते हो?
उठकर बस पेपर पढ़ते हो।

मम्मी रोज बनातीं खाना।
बच्चों को धोना-नहलाना।
लंच बॉक्स तैयार करातीं।
उनके बस्ते भी जमवातीं।
ऑफिस जाने वापस आने,
में तुम दिन पूरा करते हो।

घर का बजट बनातीं मम्मी।
रूखा-सूखा खातीं मम्मी।
सबका ध्यान सदा वह रखतीं।
अपने लिए कुछ नहीं करतीं।
फिर भी बात जरा सी हो तो,
जड़ के सहित उखड़ पड़ते हो।

सुबह-शाम करते हो किलकिल।
बात तुम्हें समझाना मुश्किल।
अपनी बात सदा मनवाना।
उजले दिन को रात बताना।
मम्मीजी की बात-बात पर‌,
नहले पर दहला जड़ते हो।

बात नहीं यह ठीक पिताजी।
अब छोड़ो यह लीक पिताजी।
मम्मी का भी कहना मानो।
उनके दुख-सुख को भी जानो।
उनकी कड़ी तपस्या के ही,
मीठे मीठे फल चखते हो।
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