वर्षा गीत

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गफूर स्नेही

काले काले छाए घन,
भर गया है नील गगन।
टप-टप टपकी बूँदें ठंडी,
इंद्रधनुष का आगमन।
ठंडी भीगी चल पड़ी है,
कल की लू लिपटी पवन।
चले खेत हाँक के बोने,
शरीफ और देवकीनंदन।
नदी नाले ताल तलैया,
कुएँ होने को जल मगन।
लहरें ही लहरें चाँदी सी,
धरती का हरा हुआ तन।
फूल खिले तितलियाँ नाचे,
भौरों का गुन-गुन गायन।
पंछी दल उड़ानें भरता,
पशुओं का भी उद्‍भरण।
आओ, पावस के स्वागत में,
गीत रचें कोई तो नूतन।
नया वर्ष तो अब लगता है,
मन से इसका अभिनंदन।
उज्जैन (मप्र)

साभार : देवपुत्र
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