हाथी पर कविता : मत करना मनमानी

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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हाथी दादा थे जंगल में सबसे वृद्ध सयाने,
डरे नहीं वे कभी किसी से किए काम मनमाने।

आया मन तो सूंड़ बढ़ाकर ऊंचा पेड़ गिराया,
जिस पर चढ़ा हुआ था बंदर नीचे गिरकर आया।

कभी सूंड़ में पानी भरकर दर्जी पर फुर्राते,
मुझको दे दो शर्ट पजामे हुक्म रोज फरमाते।

तब पशुओं ने शेर चचा से कर दी लिखित शिकायत,
शेर चचा ने आनन-फानन बुलवाई पंचायत।

पंचायत ने किया फैसला करता जो मनमानी,
बंद करेंगे पांच साल तक उसका हुक्का पानी।

माफी मांगी तब हाथी ने लिखकर किया निवेदन,
आगे अब न होगी ऐसी गलती करता हूं ऐसा प्रण।

तुमसे भी कहते हैं बच्चों मत करना मनमानी,
बंद तुम्हारा किया जाएगा वरना हुक्का पानी।
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