बाल कविता : बच्चा धर्म...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
ससुराल नहीं जाऊंगी मां, 
मैं शाला पढ़ने जाऊंगी। 
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी।


 
है उम्र अभी नन्ही-नन्ही,
मैं योग्य नहीं हूं शादी के।
बचपन की शादी का मतलब,
ये पग हैं सब बरबादी के।
 
मैं सबसे साफ-साफ कह दूं,
मैं दुल्हन नहीं बन पाऊंगी।
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी।
 
छोटी आयु में शादी का,
था चलन शहर और गांवों में।
मैं यह सब सुनती रहती हूं,
मां कविता और कथाओं में।
 
यह रीत पुरानी बंद करो,
मैं यह न दुहरा पाऊंगी।
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी।
 
बचपन के नीले अंबर में,
मुझको भी कुछ दिन उड़ने दो।
मुझको अपने अरमानों की,
सीढ़ी को चढ़ने गिनने दो।
 
अब किसी तरह के बंधन में,
मैं अभी नहीं बंध पाऊंगी। 
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी। 
 
अब मेरे पर कतरे कोई,
यह बात मुझे मंजूर नहीं।
आने वाले दिन बिटियों के,
ही होंगे वह दिन दूर नहीं।
 
अपनी मंजिल अपनी राहें, 
मैं अपने हाथ बनाऊंगी। 
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी।
 
सीता बनने की क्षमता है,
मैं सावित्री बन सकती हूं,
वीर शिवाजी, छत्रसाल-से,
महापुरुष जन सकती हूं।
 
पर उचित समय आने पर ही,
तो मैं यह सब कर पाऊंगी। 
हूं अभी बहुत ही छोटी-सी,
बस बच्चा धर्म निभाऊंगी।
 
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