दादा-दादी आज सुबह से,
बैठे बहुत रिसाने हैं।
नहीं किया है चाय-नाश्ता,
न ही बिस्तर छोड़ा है।
पता नहीं गुस्से का क्योंकर,
लगा दौड़ने घोड़ा है।
अम्मा-बापू दोनों चुप हैं,
बच्चे भी बौराने हैं।
शायद खाने पर हैं गुस्सा,
खाना ठीक नहीं बनता।
या उनकी चाहत के जैसा,
सुबह नाश्ता न मिलता।
हो सकता है कपड़े उनको,
नए-नए सिलवाने हैं।
कारण जब मालूम पड़ा तो,
सबको हंसी बहुत आई।
बापूजी का हुआ प्रमोशन,
बात उन्हें न बतलाई।
डांट रहे अम्मा-बापू को,
क्यों न होश ठिकाने हैं।
अम्मा समझीं बापू ने यह,
बात उन्हें बतला दी है।
बापू समझे मां ने उनके,
कानों तक पहुंचा दी है।
अम्मा बापू से मंगवा ली,
माफी तब ही माने हैं।