बालगीत : किससे अब उपचार कराएं...

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
अब लगती है कथा-कहानी,
है सच्ची पर बात पुरानी।


 
नदी भरी थी नीले जल से,
झरनों के स्वर थे कल-कल के।
 
पर्वत, जंगल, हरियाली थी,
सभी ओर बस खुशहाली थी।
 
वह दिन कैसे वापस आएं,
किससे अब उपचार कराएं।
 
लोग खुले दिलवाले थे तब,
मन के भोले-भाले थे तब।
 
जैसे भीतर, वैसे बाहर,
खुशी बांटते मुट्ठी भर-भर।
 
मन के भीतर द्वेष नहीं था,
घृणा भाव भी शेष नहीं था।
 
रोते चेहरे फिर हंस पाएं,
किससे अब उपचार कराएं।
 
बहुत हुई छल-छंद बनावट,
झूठी मुस्कानों की जमघट।
 
रिश्ते-नाते सिर्फ दिखावा,
हुई जिंदगी एक तमाशा।
 
पैसे फेंको काम कराओ,
पैसे से ही इज्जत पाओ।
 
कैसे मिथ्याचार हटाएं,
किससे अब उपचार कराएं।
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