बाल गीत : पापा कैसी कार मंगाई?

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
पापा कैसी कार मंगाई।
आठ लाख में घर आ पाई। 
 

 
मुझको तो गाड़ी यह पापा, 
बहुत-बहुत छोटी लगती है। 
अपने घर के सब लोगों के, 
लायक नहीं मुझे दिखती है।
 
फिर भी जश्न मना जोरों से, 
घर-घर बांटी गई मिठाई। 
 
कार मंगाना ही थी पापा, 
तो थोड़ी-सी बड़ी मंगाते। 
तुम, मम्मी, हम दोनों बच्चे, 
दादा-दादी भी बैठ जाते।
 
सोच तुम्हारी क्या है पापा
मुझको नहीं समझ में आई। 
 
मां बैठेगी, तुम बैठोगे, 
मैं भैया संग बन जाऊंगी। 
पर दादाजी-दादीजी को, 
बोलो कहां बिठा पाऊंगी।
 
उनके बिना गए बाहर तो
क्या न होगी जगत हंसाई?
 
मम्मी-पापा उनके बच्चे, 
क्या ये ही परिवार कहाते
दादा-दादी, चाचा-चाची, 
क्यों उसमें अब नहीं समाते!
 
परिवारों की नई परिभाषा, 
मुझको तो लगती दुखदाई।। 
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