बाल कविता : एक जरा-सा बच्चा

प्रभुदयाल श्रीवास्तव
एक जरा-सा बच्चा घर का,
   सब माहौल बदल देता है। 
 

 
   बच्चे का कमरे में होना,
   है खुशियों का एक खिलौना।
   उछल कूद कितनी प्यारी है,
   जैसे जंगल में मृग छोना।
   बच्चों का हंसना मुस्काना,
   भीतर तक संबल देता है।
 
   हा हा ही ही हू हू वाली,
   योग साधना बहुत सबल है।
   सत मिलता है चित मिलता है,
   और आनंद इसी का फल है।
   निर्मल मन से फूटा झरना,
   कितना मीठा जल देता है।
 
   बच्चे सदा आज में जीते,
   कल की चिंता उन्हें कहां है।
   नहीं बंधे हैं वह बंधन में,
   उनका तो संपूर्ण जहां है।
   जितनी देर रहो उनके संग,
   खुशियां ही हर पल देता है।
 
   कहां द्वेष है?कहां जलन है?
   बच्चों के निर्मल से मन में।
   अल्लाह ईसा राम लिखा है,
   उनके तन-मन के कण-कण में।
   बच्चों के पल-पल का जीवन,
   सब प्रश्नों के हल देता है।
           
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