कविता : पं. दीनदयाल उपाध्याय

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कविता : डॉ. वेदमित्र शुक्ला 'मयंक'


 

सुन्दर-सुन्दर भाई
 
दीना ज्यों कक्षा में आए
सबने स्वागत किया जोर से,
शीश झुकाकर के उसने भी
किया नमस्ते हाथ जोड़ के।
 
दीना इस कक्षा में पहली
श्रेणी तो लेकर ही आए,
साथ में नेक कर्म से अपने
वो तो सबका आदर पाए।
 
कक्षा के असफल छात्रों को
वो अध्ययन करवाते थे,
जिनको पाठ पढ़ाने में सब
शिक्षक भी कतराते थे।
 
कठिन पाठ को सरल बनाकर
दीना ने खूब पढ़ाया था,
दीना ने खूब पढ़ाया था,
इसी कारण ही पास हुए सब
दीना सबको भाया था।
 
दीना के इस कार्य के लिए
सब ने दी बधाई फिर,
सब बच्चे इक सुर में बोले।
'सुन्दर-सुन्दर भाई!' फिर।
 
साभार- देवपुत्र 
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