दादाजी हैं अस्सी के,
अस्सी के रे अस्सी के।
दादाजी ये, सोहन के,
मोहन, टीना, जस्सी के।
उफ़! गरमी इतनी ज्यादा,
बहता खूब पसीना है।
सर पर बैठ गया आकर,
कड़क जून का महीना है।
बच्चे मांग रहे पैसे,
दादाजी से लस्सी के।
दादाजी ने पलट दिया,
बटुआ सारा का सारा।
कुनबा निकला चिल्लर का,
बच्चे चीखे आ- रा -रा !
दादा बोले सब ले लो,
ढेरों सिक्के दस्सी के।
इन में सौ रुपयों की,
लस्सी घर में आएगी।
बच्चों की पल्टन सारी,
मस्ती मौज मनाएगी।
फूटेंगे जी फव्वारे,
लस्सी पीकर हंस्सी के।
दस्सी = दस पैसे।
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)