हिन्दू नए साल पर कविता : आओ, मनाएं प्रतिपदा

Webdunia
- अशोक शास्त्री 'अनंत'
 
चाहते हम हर तरफ ही हर्ष हो, उत्कर्ष हो,
साधना, आराधना, तप-त्यागमय नववर्ष हो।
 
जो हो सच्चा और अच्‍छा, पथ वही अपनाएं हम,
सबसे प्रति हो सहृदयता, कपट मन ना लाएं हम।

हिन्दू नववर्ष पर कविता : आया नववर्ष
 
सबकी धरती, हवा, पानी और यह वातावरण,
संयमित जीवन रहे और धर्ममय हो आचरण।
 
खुद जिएं औरों को भी जीने का दें हम हौसला,
पेड़-पौधे, फूल-फल, पक्षी बनावें नित घोंसला।
 
मानवी मूल्यों में ही विश्वास अपना हो सदा,
सारे भारतीय मिलकर के मनाएं प्रतिपदा। 

साभार - देवपुत्र 
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