हिन्दी कविता : ये आंगन सूना लगता है...

Webdunia
- एमएल मोदी (नाना)
 
लौट आओ गौरेया के तुम बिन,
ये आंगन सूना लगता है!
 
छत की मुंडेर पर वो तेरा फुर्र से आना,
कहां खो गया वो तेरा ची-ची कर शोर मचाना!
छोटी सी चोंच में तिनका-तिनका लाना,
और अपने लिए प्यारा सा घरौंदा बनाना!
 
लौट आओ गौरेया के...
ये आंगन सूना लगता है...!
 
याद आता है वो तेरे ठुमुक-ठुमुक कर चलना,
फुदक-फुदककर साथियों से ठिठौली करना!
पेड़ों से छत पर आना और चोंच में दाना,
लेकर फुर्र से उड़ जाना!
 
लौट आओ गौरेया के तुम बिन,
ये आंगन सूना लगता है...!!
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