लगता है इस मुन्नी के तो,
कसकर धौल जमा दूं।
ले लेती है बिस्कुट सारे,
लेती ब्रेड हाथ से छीन।
कहती डटकर दूध पिऊंगी,
भर लेती कप पूरे तीन।
लगता है अब दूध भरे ड्रम,
में इसको नहला दूं।
क्रिकेट बॉल लेकर चल देती,
लेकर जाती बल्ला।
बाहर बने ग्राउंड में करती,
जोर-जोर से हल्ला।
कहती पांच मिनट में झटपट,
सौ रन अभी बना दूं।
सौ रन तो क्या, दो रन भी वह,
कभी बना न पाती।
एक बॉल में कई बार वह,
आउट-आउट हो जाती।
मुझे गेंद मिल जाए तो,
ज़ीरो पर विकेट गिरा दूं।
पर अम्मा तो हर दम कहती,
मुन्नी तो है छोटी।
नहीं समझती बात जरा सी,
अक्ल जरा है मोटी।
मैं कहता हूं किसी वैद्य से,
चलो अक्ल छटवा दूं।
नहीं मगर इस पर भी अम्मा,
बापू होते राजी।
कहते हैं मुन्नी है रानी,
मुन्नी है शहजादी।
चलो-चलो इस गगन परी से,
अभी हाथ मिलवा दूं।