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बाल कविता: मैं और मेरी दुनिया

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सुशील कुमार शर्मा

, गुरुवार, 26 जून 2025 (16:49 IST)
अतुकांत बाल-कविता 
 
मैं सुबह सूरज से पहले उठता हूं,
कभी-कभी चिड़ियों की बोली मुझे जगा देती है।
मां की आवाज़ रसोई से आती है
हल्की गरम-सी, प्यार से भरी।
 
स्कूल जाने की जल्दी होती है,
लेकिन मेरा मन तो अभी भी
किताब के उस पन्ने में अटका है
जहां एक खरगोश बादलों पर कूदता है।
 
कभी मैं सोचता हूं
अगर पंख लग जाएं तो
क्या मैं उड़ सकता हूं घर की छत तक?
या बादल मुझे अपने साथ घुमा लेंगे?
 
कक्षा में सब चुपचाप बैठे रहते हैं,
पर मेरी कल्पना चुप नहीं होती।
वो कभी ब्लैकबोर्ड पर 
चढ़ जाती है,
कभी खिड़की से बाहर 
झांकती है।
 
दोस्तों के संग खेलते हुए
समय भाग जाता है।
और जब मैं हार जाता हूं,
तो मन थोड़ी देर उदास होता है
पर फिर हंसी लौट आती है।
 
मैं छोटा हूं,
पर मेरे अंदर एक बड़ी दुनिया है।
जहां जादू है, डर है, हिम्मत है,
और ढेर सारे सवाल हैं
जिनके जवाब 
मुझे अभी ढूंढने हैं।
 
शायद यही होना
बचपन कहलाता है।
एक रंगों से भरी किताब,
जिसका हर पन्ना
अभी खुलना बाकी है।

 (वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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