बाल कविता : पिता

अंशुमन दुबे (बाल कवि)
जब-जब डिगे पैर तुम्हारे,
हाथ पकड़कर दिया सहारा।
पहुंचाने को तुम्हें किनारे,
त्याग दिया निज जीवन सारा।
 
खुद न खाकर तुम्हें भरोसा,
समझ तुम्हें ही अपनी धन-संपत्ति।
हर दम प्यार से पाला-पोसा,
चाहे आए कष्ट या विपत्ति।
 
सफल विकास किया तुम्हारा,
अपने आशीर्वाद की छाया तले।
जिसने अपनी सारी जिंदगी दे दी,
तुम्हारी एक नन्हीं हंसी के बदले।
 
जब उन्होंने भले के लिए तुम्हें डांट दिया था,
तुमसे ज्यादा दु:ख तब उनके दिल में हुआ था।
आस है उनकी सुखी जीवन हो तुम्हारा,
बुढ़ापे की लाठी बन दो उन्हें सहारा।
 
उन्होंने तुम्हें जीवन दिया है,
उनका कभी न दिल तोड़ना।
तुम्हारी उन्हें जब आवश्यकता हो,
उनसे कभी न मुंह मोड़ना।

साभार- छोटी-सी उमर (कविता संग्रह) 
 
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